कौन जाने, अगला क्षण कैसा हो !
जो है यही दुनिया हैइसी पल हैन कहीं और कोई जहां हैन ही कोई कल हैआज की हथेलियों मेंजो रेखाएँ दिखती हैंतय करने को जो रास्ते दिखते हैं उनमें हीआगत-विगतसकल उलझनों का हल है उन रास्तों परअपने पुरुषार्थ भर...
View Articleस्टॉकहोम, दिसम्बर और मन
उदास करता है अंधेराअपने प्रारब्ध में हीलिखवाए आता है सूरज कीन्यूनतम उपस्थिति मेंसिहरता हुआअपने ज़ख्मों कीमगर स्वयं दवा होता है.तमाम अंधेरोंतमाम उदासियों कावाहक हो कर भी निर्मम विदाईयों कास्मारक हो कर भी...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७२ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति! अद्यापि श्रद्धात्रययोगनामसप्तदशोऽध्याये एव यात्रा भविष्यति!प्रिय बन्धुगण!अभी तक इस अध्याय में हमलोग तीन...
View Articleगति और किनारा
स्मृतियों का किनारा थाये मौसमउस मौसम कोतकता था यूँ जीवन कोजीवन का सहारा था.
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७३ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः!सुप्रभातः सर्वेषां सुहृदजनानां ये मनोयोगपूर्वकं अर्जुनविषादयोगोनाम प्रथमोऽध्यायतः मोक्षसंन्यासयोगपर्यन्तं निरन्तरं संलग्नाः सन्ति!प्रिय बन्धुगण!मैंने आरम्भ में ही निवेदन किया था...
View Articleउस मोड़ पर
यात्रा के उस मोड़ परपंछी थे, पानी था, गहराई थीहम होकर भीकहीं नहीं थे,ये भी एक सच्चाई थी.दृश्य का होनाऔर हमारा खोनास्वतः घटित काव्यांश-सेकविता में उपस्थित थे अनुभूतियों मेंऐसे कितने ही अंशमोती सम जड़ित...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७४ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति! अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रा अष्टादशोऽध्यायैव भविष्यति!प्रिय बन्धुगण!इस अध्याय की यात्रा के आरम्भ...
View Articleकितने आसमान !
समुद्र, पाषाण, बादल, उड़ान--एक ही दृश्य मेंकितनों केकितने आसमान !हर क्षणबदलता है परिदृश्यदेखें किस क्षण जुड़ता हैहमसे कौन दृश्य अभिराम !स्थिर विश्रामरत पंछीगोधूलि बेला के धुँधले प्रकाश मेंनिर्विकार...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७५ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति! अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्येप्रचलति!प्रिय बन्धुगण!इस अध्याय के सतरहवें...
View Articleमन रे! उड़ना लिए विश्वास
विवशता अपनी जगहअपनी जगह आकाशइस फ़ासले को पाटनामन रे!उड़नालिए विश्वासवो बढ़ती ही जाती हैउत्तरोत्तर उसकी गति से साम्य बिठानामन रे!जानना, किजीवन है संत्रास मंजिलों का अनचीन्हा पताराहों की पेचीदगियाँ--इनके...
View Articleदिसम्बर, इतवार और धूप
ये किन्ही व्यस्त ठिकानों परदौड़ती भागती सीमाओं परउगतीतो शायदइसके एहसास सेअछूते रह जाते हम दिसम्बर के बर्फ़ीले दिनों मेंफुर्सत वाले इतवार की दोपहर कोअपने पूरे ताम झाम के साथउगी वहऔर अंक में ले लियामेरे...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७६ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति!अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्ये प्रचलति!प्रिय बन्धुगण!कल तक के विवेचन में...
View Articleद्वीपों को जोड़ती धारा
तराशे जाने को प्रस्तुत होनानए आकारों मेंढ़ल पाने की सम्भावना की पुष्टि है पत्थर सहता है चोटतराशा जाता हैक्या से क्या बन जाता है. सुख-दुःख हथौड़ों से ही तो हैंचोट ही तो करते हैं एक जाकर दुखी करता हैएक का...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७७ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति!अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्ये प्रचलति!प्रिय बन्धुगण!कल के विवेचन में हम...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७८ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति!अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्ये प्रचलति!प्रिय बन्धुगण!कल हमलोगों ने...
View Articleजहाँ जाओ बेतरतीब मन साथ हो लेता है
कितने शहर देखेकितने ही आकाश जिएस्नेह सुकून से परिपूर्णज़रा सी धरा के लिएपर न मिलना था न मिला सुकूनबेतरतीब मन में बजती ही रही विचलित करने वाली धुन धूल से भरे हुए जूतों मेंभटकन के मानचित्रों का इतिहास...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ७९ :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति!अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्ये प्रचलति!प्रिय बन्धुगण!कल हमारी यात्रा इस...
View Articleउसे वहाँ होना ही था
धुँध की व्यापकता मेंवहाँ बिखरी अन्यान्य कथाओं मेंकविता की भी अपरिहार्य उपस्थिति थी उसेवहाँ होना ही था किदुखांत अध्यायों के बाद भीन जीवन रुकता हैन कहानी रूकती है धूप-दीप सावहाँ जलना होता है कविता कोआरती...
View Articleसुप्रभातम्! जय भास्करः! ८० :: सत्यनारायण पाण्डेय
ऊँ श्रीपरमात्मने नमः! सुप्रभातः सर्वेषां सज्जनानां ये गीताज्ञानयात्रायां दत्तचितः संलग्नाः सन्ति!अद्यापि अस्माकं गीताज्ञानयात्रामोक्षसन्यासयोगोनामष्टादशोऽध्ये प्रचलति!प्रिय बन्धुगण!कल के विवेचन में...
View Articleसुबह दूर है बहुत कि अभी तो रात है
गहन अँधेरे मेंतारों भरा आसमानदेख रहे थे उन्हें गिन-गिनविस्मित हुए जाते थेआसमान की समृद्धि पर तारों भरे आसमान कोदर्ज़ कर कविता मेंहमें उस क्षण की तस्वीर बनानी थीउस क्षण का आसमान हमेशा के लिए वहाँ बसाना...
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