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Channel: अनुशील
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उस मोड़ पर

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यात्रा के उस मोड़ पर
पंछी थे, पानी था, गहराई थी


हम होकर भी
कहीं नहीं थे,
ये भी एक सच्चाई थी.


दृश्य का होना
और हमारा खोना
स्वतः घटित काव्यांश-से
कविता में उपस्थित थे 


अनुभूतियों में
ऐसे कितने ही अंश
मोती सम जड़ित थे! 


दुःख-पीड़ा ही नहीं
सुख भी लुप्त था 


सुख दुःख के बीच की
कोई स्थिति थी
मन इस संधिबेला में
सकल उलझनों से मुक्त था 


कि 


हम कहीं थे ही नहीं
वहाँ मात्र हमारे होने की परछाईं थी 


यात्रा के उस मोड़ पर
पंछी थे, पानी था, गहराई थी.








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