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Channel: अनुशील
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स्टॉकहोम, दिसम्बर और मन

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उदास करता है 


अंधेरा
अपने प्रारब्ध में ही
लिखवाए आता है 


सूरज की
न्यूनतम उपस्थिति में
सिहरता हुआ
अपने ज़ख्मों की
मगर स्वयं दवा होता है.


तमाम अंधेरों
तमाम उदासियों का
वाहक हो कर भी 


निर्मम विदाईयों का
स्मारक हो कर भी 


वह प्रिय है
रहेगा हमेशा ही 


बस इसलिए 


कि 


उसके आँचल में
श्वेत ही श्वेत संस्कार हैं
रुई के फ़ाहों-से
स्वप्निल बर्फ़ के कण हवाओं पर सवार हैं! 


वह है प्रिय
रहेगा प्रिय सदा ही 


इसलिए भी


कि 


इस मौसम में ही
मेरी खिड़की पर डाल को फूल मिलते हैं
लम्बे इंतज़ार के बाद
उजले आर्किड खिलते हैं!


वह लेकर आता है
उजली बारिश
उजली बारिश से आच्छादित परिवेश
और मेरे नन्हे से गमले में
उजला वसंत  


इस
श्वेत-स्वर्णिम-सादी आभा के जादू से
दुखती पीर छू-मंतर हो जाए 


मन
क्षण भर के लिए ही सही
जादुई दिसम्बर हो जाए !




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