जो है यही दुनिया है
इसी पल है
न कहीं और कोई जहां है
न ही कोई कल है
आज की हथेलियों में
जो रेखाएँ दिखती हैं
तय करने को जो रास्ते दिखते हैं
उनमें ही
आगत-विगत
सकल उलझनों का हल है
उन रास्तों पर
अपने पुरुषार्थ भर चलना है
चलते रहना है
आज की धमनियों में
बह रहा रक्त ही
हमारी चेतना का ओज सकल है
कि
जो है यहीं है
न कहीं दूसरा कोई आसमां
न ही कहीं और कोई थल है
जो है यही दुनिया है
इसी पल है !