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Channel: अनुशील
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सुबह दूर है बहुत कि अभी तो रात है

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गहन अँधेरे में
तारों भरा आसमान
देख रहे थे 


उन्हें गिन-गिन
विस्मित हुए जाते थे
आसमान की समृद्धि पर 


तारों भरे आसमान को
दर्ज़ कर कविता में
हमें उस क्षण की तस्वीर बनानी थी
उस क्षण का आसमान हमेशा के लिए वहाँ बसाना था 


पर 


शब्द उतने थे नहीं
जितने आसमान में तारे थे
हम निपट अकेले
और वे कितने सारे थे !


हमने देखा--


उनका टिमटिमाना प्रकाश वृत्त नहीं रचता
उनकी पूरी जमात के होते हुए भी परिदृश्य वैसा ही काला रहता है 


मगर हमने महसूस किया--


रौशनी की सहजात
उनकी टिमटिमाहट
टिमटिमाती आशा के प्रतिमान रचती है
कितने ही अँधेरे एकाकी क्षणों में
कितने ही दिनमान रचती है 


तारों से पटे अम्बर को
अपना कहा जा सकता है
उन तारों से बारी-बारी
बात किया जा सकता है 


उनके होने को
उन्हें तकते हुए
जिया जा सकता है 


कि
होते होंगे वहीं
पर हमेशा दिखते तो नहीं 


जो दिख रहे हैं तारे
आशाओं के प्रतिमान सारे 


तो उन्हें दृश्य सा
सहेज लिया हृदयाकाश पर 


तारों वाला अम्बर
जी उठा भीतर 


स्मृतियों में
टिमटिमाते तारे की
धुंधली सी भी उपस्थिति 


क्षीण आशाओं के आकाश को सबल करेगी
गहराते अन्धकार में भी रौशनी की सम्भावना प्रबल रहेगी 


ये तारों वाले अम्बर की बात है
सुबह दूर है बहुत कि अभी तो रात है.


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