समुद्र, पाषाण, बादल, उड़ान-- एक ही दृश्य में कितनों के कितने आसमान !
हर क्षण बदलता है परिदृश्य देखें किस क्षण जुड़ता है हमसे कौन दृश्य अभिराम !
स्थिर विश्रामरत पंछी गोधूलि बेला के धुँधले प्रकाश में निर्विकार बैठा आँक रहा अपनी यात्रा का मर्म-- कैसी तो निरर्थक रही न उसकी उड़ान कि दूर ही रहा उससे उसका आसमान
वहीं उड़ते पंछी विचर रहे हैं गोधूलि बेला के धुँधले प्रकाश में उड़ते हुए
निमग्न हैं सम्पादित करने में अपना चिरलक्षित कर्म-- कि कितना भी निरर्थक हो विचरने का परिणाम उड़ते ही रहेंगे कि उड़ना ही उनका आसमान
पानी शांत है लहरें आती जाती हुईं पंछियों को देख विस्मित हुई जाती है गति के प्रतिमान भिन्न हैं पर गति ही तो है सबका साझा धर्म-- कैसा भी परिदृश्य हो कितना भी भयावह हो उन्वान चलते चलें कि उसी पटल पर रचेगा इन्द्रधनुष भी आखिर वो है संभावनाओं का आसमान
बड़ी स्नेहिल व्यवस्था है प्रकृति के अंक में सच है, पलते हैं प्रश्न कई पर वहीं तो सांस लेते हैं सकल समाधान !
समुद्र, पाषाण, बादल, उड़ान-- एक ही दृश्य में कितनों के कितने आसमान !