$ 0 0 कितने शहर देखेकितने ही आकाश जिएस्नेह सुकून से परिपूर्णज़रा सी धरा के लिएपर न मिलना था न मिला सुकूनबेतरतीब मन में बजती ही रही विचलित करने वाली धुन धूल से भरे हुए जूतों मेंभटकन के मानचित्रों का इतिहास लिएरास्तों की धुंध परउँगलियों से कविता उकेर कितने ही हमने गम सिए पर न मिलना था न मिला सुकूनबेतरतीब मन में बजती ही रही विचलित करने वाली धुन बादलों में उग रहा था समयकितने-कितने कैसे-कैसे आकार लिएहमने अपनी ज़मीं की सीमा सेवो सारे अनगिन आकार जिए पर न मिलना था न मिला सुकूनबेतरतीब मन में बजती ही रही विचलित करने वाली धुन कितने शहर देखेकितने ही आकाश जिएस्नेह सुकून से परिपूर्णज़रा सी धरा के लिए