स्वप्न से स्मृति तक :: एक पन्ना
आज मन इस पन्नेपर था... हमने शब्दों को पत्थरों पर उकेरा... यूँ ही बेवजह... और ये तस्वीर सजाई...फिर लगा कुछ यूँ बेकार सी बातें ही कभी कभी पूरा हासिल होती हैं ! हम अपने मन को समझाने के लिए ही तो साहित्य...
View Articleसुप्रभातं! जय भास्कर:! ८
पापा से बातचीत :: एक अंश________________________सुप्रभातः सर्वेषाम्! मंगलकामनासहितम्! जयतु भास्करः!यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीति...
View Articleजीयें इस पल में... !!
समय की गति ऐसी है"बीता हुआ कल"सपना सा लगता है कभी ऐसे भी थे हम ?!साश्चर्य आँखें भर आती हैं... !! ---"आने वाले कल"मेंये "आज"भीआश्चर्य सा ही प्रतीत होगाकि तब अपना स्वरुपपूर्णतः परिवर्तित हो चुका...
View Articleसुप्रभातं! जय भास्कर:! ९
पापा से बातचीत :: एक अंश----------------------------------मोक्ष के लिए अलग से कोई जप तप करने की जरूरत नहीं पड़ती।******चार पुरूषार्थ कहे गए हैं :----धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। इनका जो क्रम है पहले धर्म को...
View Articleकाश... !!
एक तरीका होता...होती एक लकीर...जिस पर चल सकने सेजीवन सामान्य चल पाता...काश!!एक को मनाओदूसरा रूठ जाता है...एक सिरा पकड़ोदूसरा छूट जाता है...एक राह की छाँवदूसरे के लिए धूप हो जाती हैइस क्षण की...
View Articleएक दिव्य श्रेय, एक सुखद संयोग !
बहुत पुरानी कभी की लिखी एक कविता है मेरी... जो मुझे कई बार बहुत ही सही लगती है... कि बार बार वह मेरे दुखी हृदय के समक्ष खड़ी हो आती है... सांत्वना देती हुई कि मत हो दुखी... ये दुनिया ऐसी ही है... हे...
View Articleसुप्रभातं! जय भास्कर:! १०
डॉ. सत्यनारायण पाण्डेय पापा से बातचीत :: एक अंश---------------------------------------------सुप्रभातम् सर्वेषाम्! मंगलकामनासहितम्!मनुष्य को चाहिए किसी भी विकट परिस्थिति में जब वह अकेले हो उपस्थित...
View Articleबूँदें, बारिश, कविता और आकाश !
बूँदज्यूँ गिरी आँख सेकागज़ पर कागज़ ने शोख लिया उसे.वही बूँदशब्दों में ढल गयीकिसी खोयी हुई कविता सेजा मिल गयी उस बूँद ने शब्दों में ढलने से पूर्वकिसी कविता से जा मिलने से पूर्व खिड़की के काँच पर पड़ी...
View Articleप्रकृति और हम... !!
पास होने का आभास मात्र है...पहाड़ से तब भी उतनी ही दूरी है...इतनी दिव्यऐसी विशाल है उनकी उपस्थिति...वहांअपनी क्षुद्रता महसूसने कीसम्भावना पूरी है !!दूर से चमकतेबर्फ़ के कणों की आभा कोआत्मसात करना होवहां...
View Articleअपने हिस्से का आकाश !
खिड़कीबारिशों को एकटक देखती है...बादल उसकी आंखों मेंकई रंग भरते हैं...बूंदेंजो उसके हृदय से आकरलग जाती हैं...देर तक चमचमाती हैं... !इस तरहखिड़की, बादल, बारिश, बूंदेंदेखते हुए हमअपनी दुनिया की विषमताओं...
View Articleसुप्रभातं! जय भास्कर:! ११
सत्यनारायण पाण्डेय पापा से बातचीत :: एक अंश--------------------------------------श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय के छठे श्लोक मे भगवान श्री कृष्ण ने कहा है :--द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुरएव...
View Articleस्नेहिल धूप की, आहट है...
हलकी सी,स्नेहिल धूप की,आहट है...ये जो थामे हुए है धरा को,तरुवरों का जीवट है... !!कैसी कैसी विपदाएं झेल जाते हैं पेड़ पतझड़, पावस, बसंत, शीत सब में उनका एक ही गीत-- -- "जीवन"!!उजड़े उजड़े से माहौल में,जरा...
View Articleसुप्रभातं! जय भास्कर:! १२
पापा से बातचीत :: एक अंश!स्वंयसेवा/ सामाजिक कार्य के संदर्भ में :: एक दृष्टिकोण------------------------------------------------------------------समाज को अगर कोई सचमुच सशक्त और कल्याणकारी बनाना चाहता हो...
View Article११ वाँ जन्मदिवस मुबारक, कविता कोश !!
पहले कदम परआप नहीं थाह सकतेउस कदम के मायने... चलना लड़खड़ाते हुए ही शुरू होता है! कभी कभी वही लड़खड़ाता हुआ क्षणएक दिन ऐतिहासिक हो जाता है...महत्त्व की उन ऊचाईयों पर आसीन...कि...जिसकी कभीकल्पना न की गयी...
View Articleशुभ संध्या ! जय भास्करः !! १
Dr. S.N. Pandeyबातचीत का एक अंशसोचा यहाँ भी बाँट लें...-----------------------------------कहते हैं इंसान न कुछ लेकर आया है, न कुछ लेकर जायेगा... फिर एक ये भी बात आती है कि हमारे अच्छे बुरे कर्म तो...
View Articleसाथ स्नेह के विम्ब कुछ...
कोई एक होजो मेरी ख़ामोशी सुन ले...अब मन हर एक शब्द अक्षरसब खोना चाहता है...थक गया हैचल चल कर...मिले कोई स्नेहपूर्ण गोदअब मन कुछ देरसोना चाहता है...सब धुल जायेधूल-धक्कड़...मेरा मनतुम्हारे हृदय से लग...
View Articleजीने की राह में...
धुंधली होती हैंयादें...धुंधली ही तो हैआँखें...धुंधला हीहर धाम यहाँ...जीने की राह मेंजीवन ही गुमनान यहाँ...तोऐसे ही धुँध में बढ़ते चलें...कौन जानेधुंधलके से हीकोई अप्रतिम आयाम मिले... !!
View Articleशिव / सत्यनारायण पाण्डेय
सत्यनारायण पाण्डेय आज श्रावण मास के प्रथम दिवस/प्रथम सोमवार को प्रस्तुत है पापा की एक कविता... !!------------------------------------------------------------------------------------------ईश्वर कीकृति...
View Articleहम क्या थे,क्या हो गये ?!! / सत्यनारायण पाण्डेय
आज भी प्रस्तुत है पापा की ही एक कविता !---------------------------------------------------------------हे अमृत संतान! याद करो अपनी पहचान अंधकार के बीहड़...
View Articleरुक जाना...
चलना ही जीवन है...बहुत सुना हैइसे माना भी सच भी हैकि रुके हुए तो जल भी सड़ जाता है... !परकुछ ऐसे दौर होते हैं...थका-थका साकुछ ऐसा टूटा हुआ सा मन होता है...कि रुक जाने के सिवाकोई विकल्प नहीं होताऔर यही...
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