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शुभ संध्या ! जय भास्करः !! १

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Dr. S.N. Pandey


बातचीत का एक अंश
सोचा यहाँ भी बाँट लें...
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कहते हैं इंसान न कुछ लेकर आया है, न कुछ लेकर जायेगा... फिर एक ये भी बात आती है कि हमारे अच्छे बुरे कर्म तो जायेंगे न साथ, कुछ पूर्वजन्म के संस्कारों को लेकर ही तो आये थे हम इस जहां में... क्या सही है... कौन सी बात ज्यादा उपयुक्त... ऐसे ही कुछ संशय पर ज़रा सी बात ::-
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"कुछ न लेकर आना", कुछ न लेकर जाना "यह कथन भौतिक पदार्थ से जुड़ा है! यह कथन भी परम सत्य को उद्घाटित करता है कि प्राणी पूर्वजन्म के कर्मफल के साथ पुनः इस धराधाम पर आता है, जिसे कर्मयोग सिद्धांत के आधार पर, वह प्राणी भुगत नही पाया था, पुनः इस धराधाम पर करता भुगतता, जो कर्मफल अवशिष्ट रह जाता है, असके साथ ही जाता है !


हां, यह अटल सिद्धांत है, अतः प्राणी मात्र को चाहिए कि ऐसा कर्म करे कि वह बंधन का कारण न बने, यहां के कर्म और कर्म फल "ज्ञानाग्नि दग्ध कर्माणि, तमाहुः पण्डितं बुधाः"अर्थात "जो ज्ञान रूपी अग्नि मे कर्म रूपी बीज को जला डालते हैं, ज्ञानी लोग उसे ही पण्डित कहते हैं"और तब इस परिस्थिति में "कुछ लेकर न आना एवं कुछ न लेकर जाना"भी योगियों के लिए कबीरदास के शब्दों में :---"जस के तस रखदीन्ह चदरिया"कथन को सिद्ध करता है कि सिद्ध पुरूष निष्कलंक संसार मे आते हैं, तथा संगत दोष से रहित कर्म करते हुए भी कर्मफल भोग से मुक्त हुए होने के कारण निष्कलंक वापस परमात्मतत्व मे विलीन हो जाते हैं।


मंगलकामनासहितम्!
शुभ संध्या! जय भास्करः!


--सत्यनारायण पाण्डेय 



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