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Channel: अनुशील
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रुक जाना...

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चलना ही जीवन है...
बहुत सुना है
इसे माना भी 


सच भी है
कि रुके हुए तो जल भी सड़ जाता है... !


पर
कुछ ऐसे दौर होते हैं...
थका-थका सा
कुछ ऐसा टूटा हुआ सा मन होता है...


कि रुक जाने के सिवा
कोई विकल्प नहीं होता
और यही शायद सबसे उपयुक्त उपक्रम भी... 


कि
गति के नाम पर
गलत राह पर बढे जाना
कौन सा गति का सम्मान है ?!


कई बार
हम जाने-अनजाने
ऐसे हो जाते हैं अपने कृत्यों-व्यवहारों में
जो कि स्वयं जीवन का अपमान है !!


तो
तनिक रुक जाते हैं...


बहुत भाग लिया
अब स्थावर हो कर देखें...


क्या अब भी वो पीछे आता है
दुःख हमें ढूंढ-ढूंढ कर रुलाता है... !!


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