$ 0 0 चलना ही जीवन है...बहुत सुना हैइसे माना भी सच भी हैकि रुके हुए तो जल भी सड़ जाता है... !परकुछ ऐसे दौर होते हैं...थका-थका साकुछ ऐसा टूटा हुआ सा मन होता है...कि रुक जाने के सिवाकोई विकल्प नहीं होताऔर यही शायद सबसे उपयुक्त उपक्रम भी... किगति के नाम परगलत राह पर बढे जानाकौन सा गति का सम्मान है ?!कई बारहम जाने-अनजानेऐसे हो जाते हैं अपने कृत्यों-व्यवहारों मेंजो कि स्वयं जीवन का अपमान है !!तोतनिक रुक जाते हैं...बहुत भाग लियाअब स्थावर हो कर देखें...क्या अब भी वो पीछे आता हैदुःख हमें ढूंढ-ढूंढ कर रुलाता है... !!