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Channel: अनुशील
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प्रकृति और हम... !!

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पास होने का आभास मात्र है...
पहाड़ से तब भी उतनी ही दूरी है...


इतनी दिव्य
ऐसी विशाल है उनकी उपस्थिति...


वहां
अपनी क्षुद्रता महसूसने की
सम्भावना पूरी है !!


दूर से चमकते
बर्फ़ के कणों की आभा को
आत्मसात करना हो


वहां उगे
फूलों के एक पूरे जंगल के बीच
चरण धरना हो


सब सहज ही
स्वतः हो जाता है...


वातावरण की महिमा है


उस ऊंचाई पर
आपका दुःख स्वमेव मुस्कुराता है... !!


प्रकृति अपनी विशालता में स्निग्ध किरणें लिए चलती है...
उसके हृदय में हमारे लिए हर क्षण अपार करुणा पलती है... ... !!


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