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Channel: अनुशील
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बूँदें, बारिश, कविता और आकाश !

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बूँद
ज्यूँ गिरी आँख से
कागज़ पर 


कागज़ ने शोख लिया उसे.


वही बूँद
शब्दों में ढल गयी
किसी खोयी हुई कविता से
जा मिल गयी 



उस बूँद ने शब्दों में ढलने से पूर्व
किसी कविता से जा मिलने से पूर्व 



खिड़की के काँच पर पड़ी बूंदों को
एकटक देखा था.



शायद उन बारिश की बूंदों की नमी को आत्मसात किया हो 


तभी तो कविता में
आकाश सी संवेदनाएं खिल पायीं.



आसमान ज्यूँ भेद नहीं करता
अपनी धरा पर सहर्ष बरस  जाता है
वैसे ही तो कविता
सबकी हो जाती है
सबपर नेह बन बरस जाती है...



ये और बात है
हम हर बार नहीं भींगते 



कि हम कई बार छाता ताने रहते हैं...
बरस रही बूंदों से, जान बूझ कर, अनजाने रहते हैं... !!


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