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शिव / सत्यनारायण पाण्डेय

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सत्यनारायण पाण्डेय 

आज श्रावण मास के प्रथम दिवस/प्रथम सोमवार को प्रस्तुत है पापा की एक कविता... !!
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ईश्वर की
कृति निराली...
नासमझी ने,
मेरी चाल बना दी मतवाली
जी हाँ, 'मत'-वाली (मत-सम्प्रदाय वाली)... !




समझें हम खुद को,
सृष्टिसंरचना को...
तभी होगी,
धरा पर सर्वत्र खुशहाली... !!


किसी ने पूछा,


"तुम किस्मत वाले हो?"
(किस 'मत'वाले हो?)


मैंने कहा-


मैं हूं सत्य-सनातन मतावलम्बी,
किस 'मत'की (किस्मत की) बात कहूं?


सभी मत तो
अलग अलग
एक दूसरे के लिए
प्रश्नवाचक- किस्मत (किस 'मत')
ही तो हैं !



मैं भी हूं
किस्मत वाला (किसी 'मत'वाला)...
अपनी धुन,
अपने आप में 'मत'वाला (मतवाला)...

***

जो शब्द को
अर्थ के धरातल पर गुनें


उनकी सनातन ध्वनियों सहित
शब्दों को गहराई से सुनें 


तो थाह लेंगे


कि... 


सकल मत-मतान्तर
हैं ऊपर ऊपर...
समझ गये,
तो न पायेंगे अन्तर... !



अन्तःकरण में धरें ध्यान,
पायेंगे जीव मात्र को समान,
फिर ईश्वर और जीव  दोनो एक से दिखेंगे --


-- "शिव"-- !


"शिव"
अर्थात कल्याण,
अर्थात् केवल कल्याणकारी भाव का साम्राज्य  


वो धरातल
जहाँ आत्मा परमात्मा
सर्वथा अविभाज्य... !!    


*** *** ***



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