नदी की तरह...
वही मूककभी वही वाचाल... मन हैपहाड़ों से उतरतीकिसी नदी की तरह... कहते कहतेगला रुंध गया...गुज़र रहे थेगुज़रते रहे लम्हेकिसी सदी की तरह...आँखों मेंसागर लिए...बहते रहे हमअन्यान्य पड़ावों से गुज़रतीकिसी नदी की...
View Articleहर एक झरोखा बंद था...
बिखरे हुए मन कोसमेटना...क्योंकर होता...कैसे होता... ?!!सब तार टूटे थे....विडम्बनाओं का काफ़िलादूर तक फैला था...दर्द कई रूप धरेविद्यमान था...दुःख कई थे...सुख और दुःख के बीच की सीमा रेखा काकुछ यूँ हुआ था...
View Articleकाश...
आँखों में आंसू नहीं आने देता...हर एक मोती चुन लेता...काश! आकाश सी होती धवल उदारता...जीवन सारे बिखरे ख़्वाब फिर से बुन लेता...यूँ खुद को केंद्र में रखकर सोचते हुए जब एक लकीर खींचते हैं हमतो जीवन से लगायी...
View Articleवो कल भी वहीं था, आज भी वहीं है...
रास्ते हमेशा अकेले होते हैं...हमेशा से अकेले हैं...आस्था विश्वास की हरियाली कहीं थाम लेती हैतो कहीं होता है मरुभूमि सा सूनापन प्रारब्ध ने रचे हैं व्यतिक्रम...रास्तों की नियति है चलते जाना...और अंतिम...
View Articleकभी आँखों में उजास भी हो...
उदास डाल परश्वेत पंखुड़ियों ने अवतरित हो कररिसते दर्द कोथाम लिया... !!समूचा वातावरण जमा हुआ था...बर्फ़ की चादर से ढंकी थी धरा...ऐसी ही किसी मर्मान्तक सफ़ेदी ने जैसे भावनाओं को भी ढँक दिया हो...लुप्त था...
View Articleबनें रहें भ्रम...
हताशा ने हर ओर ताका...तुम्हें ढूंढते हुए हर एक दिशा में झाँका...मिली केवल निराशा...उस अँधेरे में हमने शब्द उकेरे...सुबकियों के बीच धुंधली सी एक कविता रची...आँखों में अथाह सूनापन लिएहमने क्षितिज की ओर...
View Articleफिर एक सफ़र आँखों के आगे है...
अनलिखी यात्राएं...जो कलमबद्ध न हो पाए वे संस्मरण...आवाज़ देते हैं... !हवाओं का शोर...अनजान शहरों की जानी पहचानी सी गलियां...सब वाकये लिख जाने थेकम से कम सोचा तो यही था...लेकिन...रह गया...सफ़र अभी बाक़ी...
View Articleअनकहा सा कुछ
जो कहे जाने से रह गयींवे बातें अनमोल हैं अनकही रहींबचा रहा उनका आत्मिक स्पंदन उच्चरित होते ही शायदगुम जाता अर्थकहीं कोलाहल में !ठीक ही हैबहुत कुछ अनकहा रहनाआखर-आखर भावों को तहना कि किसी रोज़ मिलेंगे...
View Articleसमंदर सी गहरी है पीड़ा...
पहाड़ से दुःख हैं...समंदर सी गहरी है पीड़ा...मुट्ठी सेरेत की तरहफिसलते दिख रहे हैं रिश्ते...इतना दर्दकि आंसू सूख जाए...ऐसी बेचैनीकि 'जीवन'जीवन न रह जाए...सोचा न था कि इतना दुरूह भी हो सकता है समय...इतनी...
View Articleइन दिनों...
एक बूँद आंसू मेंझलकता रहा समंदर...कितनी बेचैन लहरेंलहराती हैं अन्दर... तट की गीली मिट्टी मेंथाहते रहे खोया हुआ सुकून...तलुओं की अनुभूति अलगकुछ अलग सी ही है मन की भी धुन... हवा के आँचल मेंहै टंकी हुई...
View Articleसारा आकाश
झरोखे से दीखता है जोज़रा सा आसमानवहहमारे मुट्ठी भर अरमानों के प्रतीक साझिलमिलाता है.यही आसमानहमारी आँखों का सारा आकाश है.नभ के असीम विस्तार कोअपने हिस्से के आकाश से हीपहचानते हैं हमवहां टंकने वालेचाँद...
View Articleजीवन की इस राह में...
पहाड़!तुम तक आते हुएहमने नदी को छुआवो नदी युगों से तुम्हारे चरण धो रही हैकल-कल बहते झरनों से उसकी हर क्षण बात हो रही हैहमने देखापेड़ जो टिक कर खड़े हैंउनसे झरते पत्तों से एक कथा झर रही हैये निर्जनता कितनी...
View Articleईला, तुम्हारे लिए !
तुम नहीं जानतीकि तुम क्या हो हमारे लिए.हमारी विवशता हैहमारे पास शब्द नहीं इतने समर्थजो व्यक्त कर सकें "तुम्हें".तुम्हें कितनी ही मन्नतों से पाया है...मुस्कान बन कर आई हो हमारी दुनिया में...आँगन हमारा...
View Articleएक पूरी दुनिया है भीतर...
एक पूरी दुनिया है भीतरउथल पुथल का समूचा संसार हैगहरी कोई अँधेरी सी गुफाजहाँ स्पष्ट कोई थाह नहीं हैलकीरों का एक पूरा जमघट हैकितने रास्तेकितने ही ब्रह्माण्डतैर रहे हैं अथाह शून्य मेंइंसान अपने आप में एक...
View Articleये कठिन समय है...
ये कठिन समय है...ये समय हैउम्मीदों के मर जाने का...ये समय रच रहा है ऐसे विम्बजिनमें खंडहरों का एक शहर बसा है ये समय हैवहीं कहीं खुद भीएक खंडहर हो जाने का... पर सच ये भी है-उड़ते धूल और मुड़ती राहों के...
View Articleसामीप्य के पैमाने ठगे से रह गए
सब अच्छा ही तो था...सब अच्छा ही तो है...फ़िर कहाँ हुई चूककैसे छिटक गया फूल और ओस रिश्ता इतनी दूरियां कैसे आ गयींकि सामीप्य के पैमाने ठगे से रह गए पता ही नहीं चला कब उग आयीं दरारें...ऐसे में क्या फ़र्क...
View Articleहमने यूँ जीने की तरकीब निकाली...
एक आधी पंक्ति मेंअपना टूटना बिखरना क्या ही बताते...सो कोरे पन्नों वालीएक पूरी ही क़िताब लिख डाली.'चुप'में रच डाला सारा प्रेमआंसुओं की लिपि में लिखे कुछ ज़रूरी ख़तधैर्य के महीन धागों से बुना इंतज़ारमौत के...
View Articleतुम आई तो...
सांझ,तुम आई तो...पर आज भीसाथ नहीं लायी..."सुबह होगी"इस बात की आश्वस्ति... !
View Articleमिट्टी का जीवन...
मिट्टी का जीवन...मिट्टी के दीपक सा ही है...गढ़ा जाता है जलने के लिए...रौशनी बन कर आँखों में पलने के लिए...तेज़ हवा के विरुद्धदीप का संघर्ष शाश्वत है...मनुष्यता के समक्ष खड़ी पहाड़ सी मुश्किलें हैंदृढ़...
View Articleईला, तुम्हारे लिए !
तुम नहीं जानतीकि तुम क्या हो हमारे लिए.हमारी विवशता हैहमारे पास शब्द नहीं इतने समर्थजो व्यक्त कर सकें "तुम्हें".तुम्हें कितनी ही मन्नतों से पाया है...मुस्कान बन कर आई हो हमारी दुनिया में...आँगन हमारा...
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