Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

सारा आकाश

$
0
0

झरोखे से दीखता है जो
ज़रा सा आसमान
वह
हमारे मुट्ठी भर अरमानों के प्रतीक सा
झिलमिलाता है.


यही आसमान
हमारी आँखों का सारा आकाश है.


नभ के असीम विस्तार को
अपने हिस्से के आकाश से ही
पहचानते हैं हम


वहां टंकने वाले
चाँद सूरज तारों को
जानते हैं हम


कि
हमारे अरमानों का सूरज भी तो
वहीँ कबसे
ऊग रहा है डूब रहा है.


इस ऊगने डूबने के सिलसिले को
क्षितिज रोज़ जीता है


उदय की लालिमा
अवसान का दुःख-


ये दोनों 

उसके हिस्से आते हैं


क्षितिज
धरा और आकाश के
तार-तार दामन को
अपनी परिधि में सीता है.


झरोखे की क्या बिसात!


पर वह 

इन अद्भुत घटनाओं का 

प्रत्यक्षद्रष्टा तो है ही 


झरोखा जानता है 

अपने हिस्से के आकाश को.


इसी झरोखे पर बैठा मन

कभी ऊगता है 

कभी डूब जाता है


कभी मन क्षितिज हो जाता है !!


Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>