$ 0 0 झरोखे से दीखता है जोज़रा सा आसमानवहहमारे मुट्ठी भर अरमानों के प्रतीक साझिलमिलाता है.यही आसमानहमारी आँखों का सारा आकाश है.नभ के असीम विस्तार कोअपने हिस्से के आकाश से हीपहचानते हैं हमवहां टंकने वालेचाँद सूरज तारों कोजानते हैं हमकिहमारे अरमानों का सूरज भी तोवहीँ कबसेऊग रहा है डूब रहा है.इस ऊगने डूबने के सिलसिले कोक्षितिज रोज़ जीता हैउदय की लालिमाअवसान का दुःख-ये दोनों उसके हिस्से आते हैंक्षितिजधरा और आकाश केतार-तार दामन कोअपनी परिधि में सीता है.झरोखे की क्या बिसात!पर वह इन अद्भुत घटनाओं का प्रत्यक्षद्रष्टा तो है ही झरोखा जानता है अपने हिस्से के आकाश को.इसी झरोखे पर बैठा मनकभी ऊगता है कभी डूब जाता हैकभी मन क्षितिज हो जाता है !!