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Channel: अनुशील
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इन दिनों...

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एक बूँद आंसू में
झलकता रहा समंदर...
कितनी बेचैन लहरें
लहराती हैं अन्दर... 


तट की गीली मिट्टी में
थाहते रहे 

खोया हुआ सुकून...
तलुओं की अनुभूति अलग
कुछ अलग सी ही है 

मन की भी धुन... 


हवा के आँचल में
है टंकी हुई 

बेचैनियाँ...
लहरों के शोर में
है पसरी हुई 

खामोशियाँ... 


अपना पता भूले हुए
हम इस मौन में
अपनी बात तलाश रहे हैं...
लौटने की राह ओझल है
इस तथ्य से
बीते दिनों हम बड़े हताश रहे हैं !


इन दिनों


एक रास्ता उकेर रहे हैं 

कल्पना की सरहद पर...
जी रहे हैं एक मौन 

कविता में...


इस तरह सांस लेते रहने की गुंजाईश बचा रखी है हमने !! 


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