$ 0 0 एक बूँद आंसू मेंझलकता रहा समंदर...कितनी बेचैन लहरेंलहराती हैं अन्दर... तट की गीली मिट्टी मेंथाहते रहे खोया हुआ सुकून...तलुओं की अनुभूति अलगकुछ अलग सी ही है मन की भी धुन... हवा के आँचल मेंहै टंकी हुई बेचैनियाँ...लहरों के शोर मेंहै पसरी हुई खामोशियाँ... अपना पता भूले हुएहम इस मौन मेंअपनी बात तलाश रहे हैं...लौटने की राह ओझल हैइस तथ्य सेबीते दिनों हम बड़े हताश रहे हैं !इन दिनोंएक रास्ता उकेर रहे हैं कल्पना की सरहद पर...जी रहे हैं एक मौन कविता में...इस तरह सांस लेते रहने की गुंजाईश बचा रखी है हमने !!