पहाड़ से दुःख हैं...
समंदर सी गहरी है पीड़ा...
मुट्ठी से
रेत की तरह
फिसलते दिख रहे हैं रिश्ते...
इतना दर्द
कि आंसू सूख जाए...
ऐसी बेचैनी
कि 'जीवन'
जीवन न रह जाए...
सोचा न था
कि इतना दुरूह भी हो सकता है समय...
इतनी निर्मम भी हो सकती है नियति की क्रीड़ा...
ओह! पहाड़ से दुःख हैं...
समंदर सी गहरी है पीड़ा...