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फिर एक सफ़र आँखों के आगे है...

अनलिखी यात्राएं...
जो कलमबद्ध न हो पाए वे संस्मरण...


आवाज़ देते हैं... !


हवाओं का शोर...
अनजान शहरों की जानी पहचानी सी गलियां...
सब वाकये लिख जाने थे
कम से कम सोचा तो यही था...


लेकिन...
रह गया...


सफ़र अभी बाक़ी है...
इस बीच कितना समय अपनी गति से बह गया...


आज यूँ ही
उनके न लिखे जाने पर
ये कविता सा कुछ जो लिख रहे हैं...
तो कितने ही मोड़
पीछे से
आवाज़ देते दिख रहे हैं...


शायद ही उनतक फिर दोबारे लौटना हो... !


लिख कर उन्हें सहेज लेना था...
कदमों की गति को उकेर लेना था...


कि सफ़र यादों में टंकित रह जाये...
स्याही की बूँदें उसको गाये... !!


कोई बात नहीं...


जो रह गया
उसे अगले अवकाश में लिख जायेंगे...
मन में तब तक और रच बस ले
उसमें ही कहीं हम भी दिख जायेंगे...


अभी आँखों में बहुत सारे सपने हैं...
ये सपनों के सच होने का समय है...


कि चिरप्रतीक्षित एक सफ़र
आँखों के आगे है...

इस बार जानी पहचानी है डगर...

ये यात्रा मुझे ले जाने वाली है
मेरे अपने देश... मेरे अपने घर... !!


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