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ये कठिन समय है...

ये कठिन समय है...


ये समय है
उम्मीदों के मर जाने का...


ये समय रच रहा है ऐसे विम्ब
जिनमें खंडहरों का एक शहर बसा है 


ये समय है
वहीं कहीं खुद भी
एक खंडहर हो जाने का... 


पर सच ये भी है-


उड़ते धूल और मुड़ती राहों के बीच
यही समय है
खुद को पाने का...
लुट चुकी उम्मीदों से एक पुल बनाने का... 


यही समय है
खंडहर हो चुके हर शय के जी जाने का...


यहीं होगा खो चुकी आत्मीय आवाज़ों को फिर से पाना
इस मोड़ से ही शुरू होगा नया सफ़रनामा !





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