एक पूरी दुनिया है भीतर
उथल पुथल का समूचा संसार है
गहरी कोई अँधेरी सी गुफा
जहाँ स्पष्ट कोई थाह नहीं है
लकीरों का एक पूरा जमघट है
कितने रास्ते
कितने ही ब्रह्माण्ड
तैर रहे हैं अथाह शून्य में
इंसान अपने आप में एक बहुत बड़ी दुनिया है
इतनी बड़ी
कि शायद इतना बड़ा कोई पैमाना ही नहीं जिससे मापी जा सके वृहदता
ऐसा कोई यूनिट नहीं जिससे अंदाजा हो सके इस दुनिया की विचित्रता का
न ही कोई स्केल है जिस पर सिमित किया जा सके इस विस्तार को
अपार
समझ की सीमाओं से परे इस अपूर्व ब्रह्माण्ड का
एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा है इंसान
ये छोटा सा हिस्सा अपने आप में ब्रह्माण्ड है
जटिल
अपार
समझ की सीमाओं से परे... !