Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

सामीप्य के पैमाने ठगे से रह गए

$
0
0

सब अच्छा ही तो था...
सब अच्छा ही तो है...


फ़िर कहाँ हुई चूक
कैसे छिटक गया फूल और ओस रिश्ता 


इतनी दूरियां कैसे आ गयीं
कि सामीप्य के पैमाने ठगे से रह गए 


पता ही नहीं चला 

कब उग आयीं दरारें...
ऐसे में क्या फ़र्क पड़ता है, 

जीतें या हारें...


इतना जटिल है जीवन
इतनी जटिल है मन की दुनिया


कैसे सुलझे
इतने उलझे हुए हैं जो सिरे


कुछ भी तो नहीं हाथों में मेरे!


फ़िर लगता है,
वेदना का मौसम है...
मौसम ही है तो बदल जाएगा...


ओह! ये तो रात है अभी
सुबह होगी, तो- 

फूलों पर 

ओस की बूंदों का अस्तित्व 

नज़र आएगा... !




Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>