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Channel: अनुशील
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हर एक झरोखा बंद था...

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बिखरे हुए मन को
समेटना...
क्योंकर होता...
कैसे होता... ?!!


सब तार टूटे थे....
विडम्बनाओं का काफ़िला
दूर तक फैला था...


दर्द कई रूप धरे
विद्यमान था...


दुःख कई थे...


सुख और दुःख के बीच की सीमा रेखा का
कुछ यूँ हुआ था विलय...
कि सुख और दुःख
अनन्य अविभाज्य से थे दृश्यमान...


आंसुओं की सहज उपस्थिति ने
सुख दुःख के आँचल नम कर रखे थे...


शब्द कुछ कहते हुए
कुछ और अभिव्यक्त कर जाते थे...
उनकी अपनी सीमा थी... 


मौन अपनी तरह से संतप्त था...


हर एक झरोखा बंद था...
रूठा था प्रकाश...


बरस रहा था हृदयाकाश... !!




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