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Channel: अनुशील
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कभी आँखों में उजास भी हो...

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उदास डाल पर
श्वेत पंखुड़ियों ने अवतरित हो कर
रिसते दर्द को
थाम लिया... !!


समूचा वातावरण जमा हुआ था...
बर्फ़ की चादर से ढंकी थी धरा...
ऐसी ही किसी मर्मान्तक सफ़ेदी ने जैसे
भावनाओं को भी ढँक दिया हो...
लुप्त था स्पंदन...
ऐसे में अहर्निश चलता रहा क्रंदन...


सूरज भी नहीं था...
धरा किरणों की बाट जोह रही थी...


ऐसे नीरस माहौल में कैसे खिलता फूल...
चुभ रहे थे चुभने ही हैं शूल...


लेकिन
सारी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद
अपने गमले की उष्णता से
ग्रहण कर जिजीविषा
खिल आया एक फूल...


उसकी छवि ने
मन के गमले को सिंचित करने की नींव डाली...
झाड़ी हमने धूल...


बहुत नमी है आँखों में...
सींच लेंगे इनसे ही मन की माटी...


ये जगत है न...
यहाँ स्वार्थ के कारागार में कैद है आत्मा...
एक दूसरे के आंसू पोंछने की कभी कहाँ रही भी है यहाँ परिपाटी...


खुद से ही खुद को थामना है...


कभी आँखों में उजास भी हो...
उदास रहना जीवन की अवमानना है... !!


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