अथाह सागर और हम!
एक नौका विस्तृत सागर में यूँ स्वयं को लहरों के हवाले कर देती है जैसे कोई अपने किसी परम मित्र पर विश्वास कर समस्यायों से लड़ने की हिम्मत जुटाता है मझधार में…! लहरों पर डोलती इस नौका की तस्वीर हमने विशाल...
View Article'अनुशील' के पन्ने पलटते हुए!
लिखने के मौसम होते हैं... मन का भी मौसम होता है... वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ एवं शीत के मौसम आते हैं, बीत जाते हैं. पर शायद मन के मौसम का कुछ अलग ही गणित होता है, अनगिनत होते हैं मन के मौसम या फिर मात्र दो...
View Articleस्याही का भींगा अंतर्मन!
आँखों से ढ़लकागालों तक आते आतेसूख गया... आँसू भी थका थका सा थाबीच राह हीरुक गया...मन उदास हो तोअब मैं बसइंतज़ार करती हूँ,समय ही है बीत जाएगाघबड़ाना मेरा अबरुक गया... वक़्तकरवटें लेता हैसब बदल जाता...
View Articleसांझ ढ़ले...!
हम सबको एक रोज़ देखनी है जीवन की शाम… एक रोज़ हम सबको बूढ़ा होना है, फिर भी जाने क्यूँ "आज" इस बात का हमें एहसास ही नहीं हो पाता… एकाकी शाम को नहीं बैठ पाते हम एकाकी बूढ़े बरगद के नीचे, भागते जो रहना...
View Articleतो आज मुझे क्या लिखना चाहिए?
चलते रहने में ही कविता है… चलते रहने में ही प्रवाहमय भावों का अंकन है… चलते रहने में ही भलाई है कि चलते रहेंगे हम तभी पहुंचेंगे उन पड़ावों तक जो स्वयं मंजिल का प्रारूप होगी… जहां कविता अपनी सम्पूर्णता...
View Articleआशीषों का उपहार!
तुम्हारे जन्मदिन पर सहेजी शुभकामनाएं भेज रहे हैं भाई तुम्हें... कहते हो न तुम कि अनुशील पढना तुम्हें अच्छा लगता है... तो आओगे ही इधर... ये हमारी शुभकामनाएं, प्यार व आशीषों का उपहार लेते जाना!!!तेरे...
View Articleधागे की महिमा!
स्वप्न से स्मृति तकपर कृष्ण प्रेम और ललित प्रेम शीर्षक कविता पढ़ना ऐसा था जैसे अपने भीतर से ही बहुत कुछ ढूंढ़ निकालने की यात्रा पर चल देना...कृष्ण प्रेम था ललित बहुतपर ललित प्रेम है कृष्ण नहींकविता की...
View Articleशीर्षकहीन!
होता क्या है कई बार, हमने जो कभी सोचा भी न हो, वैसा सुखद आश्चर्य बन प्रगट हो जाती है ज़िन्दगी, अनायास ही हंसने खिलखिलाने के बहाने दे जाती है और ऐसा हो तो आँखें नम हुए बिना भी नहीं रहतीं!कल ये राखियाँ...
View Articleक्यूँ...?
आँखें बंद हुईं और खुलींबस पलक झपकने जितना ही तो है जीवनउस अंतराल में बीता जो हिस्सा एक क्षण काउसी में जैसा सरसरा कर सरक गया जीवनकितनी छोटी सी इकाई है समय कीकितना छोटा सा है जीवनएक सांस आई और एक गयीइतने...
View Articleनीरस एवं निराश क्षण में!
ये बात फ़ैल गयीअफ़वाह की तरहजीवन हो गया है अबएक कराह की तरह हर मोड़ पर जैसे केवलहमलावर ही खड़े हैंरात तो रात दिन भी हो गयाअब अन्धकार की तरहकिस बात पर फक्र करेंकिस शय पर नाज़ होघर घर नहीं रहासज गया...
View Articleयात्रा का हासिल!
Rome - the city of visible history, where the past of a whole hemisphere seems moving in funeral procession with strange ancestral images and trophies gathered from afar.-George Eliot सच, ऐसा ही तो है...
View Articleबिन पहियों का रथ!
मेरी प्रार्थनाएंछोटी होने लगी है,मुझे डर हैमैं भूल न जाऊंहाथ जोड़ना...मेरा मनउदास रहने लगा है,भूल जाती हूँपढ़ते हुएपसंदीदा पन्नों को मोड़ना...जाने कैसे निभेगासाँसों का आना जाना,होता नहीं अबहादसों के...
View Articleतेरे प्रताप से...!
एक दिन अभी अभी आकर दस्तक दे गया स्मृति के गलियारों से, कुछ पंक्तियाँ लिख गयीं और इसे यहाँ सहेज ले रहे हैं हम कि जब खो जाएँ तो कोई डोर थामे फिर आ सकें सतह तक ये देखने कि बची हुई है रौशनी, बचा हुआ है...
View Articleभीतर कितने ही शहर बसे हैं!
झरोखे से दीखता दृश्य रोमांचित करता है हमेशा, आर्क ऑफ़ कांस्टेंटायिन की एक भव्य तस्वीर लगायी है पिछलेपोस्ट में, पर कोलोसियम के इस झरोखे से दृश्यमान आर्क की यह तस्वीर हमें बहुत अच्छी लगती है. अपनी...
View Articleकृष्णं वंदे जगद्गुरुम्!
मुझे क्या काम दुनिया से मुझे तो श्रीकृष्ण प्यारा है!यशोदा नन्द का नंदन मेरी आँखों का तारा है!! ये पंक्तियाँ गीता प्रेस की किसी पुस्तक में पढ़ी थी बचपन में, हम बहुत गुनगुनाते थे तब इसे......
View Articleदिखती कोई राह नहीं...!
कौन करे अबपहले की बातें,जब वहाँ तक जातीदिखती कोई राह नहीं... कौन पालेउड़ जाने के सपने,जब बंध कररह जाना है यहीं कहीं... कौन रचे अबरेत किनारे,है मझधार मेंतो मझधार सही... जितनामिलता है,उससे कहीं अधिकछूट...
View Articleआड़ी तिरछी रेखाएं!
हम सभी वस्तुतः एकाकी द्वीप हैं, एक दूसरे से अलग... एक दूसरे से दूर अपने अपने एकांत को जीते हुए... किनारों पर लहरों का टकराना थाहते हुए. हम सब ऐसे ही बिंदु हैं बड़े से समुद्र के विस्तार में... अलग हैं,...
View Articleकविता ने कहा था...!
एक पुराना टुकड़ा मिला, हृदय के बहुत करीब है यह… इसे यहाँ लिख कर रख लेना चाहिए. जाने फिर कलम यह लिख पाए या नहीं, जाने कविता फिर हमसे कभी यूँ कुछ कह पाए या नहीं…! कविता ने जिस क्षण यह कहा था, उसे स्मरण...
View Articleजहां से शुरू किया था सफ़र...!
पगडण्डी शीर्षक पर लिखते हुए कभी लिखा था इसे चिरंतनके लिए. आज यह कविता सामने आकर हमें पीछे की ओर ले जाने का हठ करने लगी. जहां से शुरू किया था वहीँ पर फिर से लौट जाने का कितनी बार मन होता है न, पर ऐसा...
View Articleकभी कभी भींगना भी चाहिए!
कहीं से शुरू होती है और बात कहीं तक पहुँचती है… जैसे जीवन यात्रा हर क्षण एक नया आश्चर्य है, वैसे ही यात्राएं भी अपने साथ हर क्षण आश्चर्यचकित कर देने का सामर्थ्य लिए चलती हैं. सबकुछ पूर्वनिर्धारित नहीं...
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