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Channel: अनुशील
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तेरे प्रताप से...!

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एक दिन अभी अभी आकर दस्तक दे गया स्मृति के गलियारों से, कुछ पंक्तियाँ लिख गयीं और इसे यहाँ सहेज ले रहे हैं हम कि जब खो जाएँ तो कोई डोर थामे फिर आ सकें सतह तक ये देखने कि बची हुई है रौशनी, बचा हुआ है जीने का ज़ज्बा और बचे हुए हैं मुस्कुराते फूल.…


उदासी यूँ घेर लेती है
कि राह नहीं देती-
किसी ख़ुशी के लिए...
किसी अपने के लिए...
किसी भी ऐसे छिद्र के लिए
जिससे आ सके
जरा सी भी
रौशनी भीतर...


सबसे हो दूर
सिमट जाते हैं
अपने एकांत में हम


बंद पट और बंद खिड़कियों पर जो दस्तक होती है
वो सब अनसुना रह जाता है
कि वैसे हताश क्षणों में सुनने की शक्ति ही खो देते हैं हम


खुद जब हम ही हम तक नहीं पहुँच पाते
ऐसी कठिन घड़ी में तुम
हमसे हमारी पहचान करा देते हो


दो अनमोल से बोल बोलकर
न गिर सकने वाली हर दिवार गिरा देते हो


हो इतने स्नेही इतने निर्मल
सूखी आँखों से अश्रुधार बहा देते हो



सच, इतना उदास थीं कि रोना भूल गयी थीं आखें
आवाज़ सुन तुम्हारी
खूब रोयीं


फिर हुआ ऐसा
कि तेरे प्रताप से
कुछ कवितायेँ उगीं हमारे भीतर जो थीं तुमने ही कभी बोयीं 


ऐसी ही एक कविता तुम्हें देना चाहते हैं!


कैसा दीखता है जीवट,
कैसी होती है सदेह प्रेरणा,
कैसे हर लिया जाता है सकल संताप दो मीठे बोलों से,
कैसे बेमोल बिक जाया जाता है,
कैसे समाधान की किरण बनकर
समस्यायों की विराट भूमि पर
खिल जाया जाता है… 


ये सब तुमसे मिलकर हम देखना चाहते हैं!


आसान नहीं है ये देख पाना, जानते हैं! 

कि ज्योति को देखना हो तो
ज्योति को पहले आत्मसात करना होता है 

कि कुछ कुछ उस जैसा ही होना होता है 


इसलिए, गाहे-बेगाहे 

हम तुझतक जाती राह की गहराई थाहते हैं!

अपनी पिछली यात्रा में तुमसे नहीं मिल पाए न 

इस क्षति की हम अब भरपाई चाहते हैं!!

***

स्नेहाधीनमेरे भैया का मन किया कल कि वे मेरी बात मान कर मिलने चले आयें यहाँ पर एक "लेकिन" था जो साथ खड़ा था इस इच्छा के.… ये लिखी हुई पंक्तियां, जिन्हें हम कविता कहने की धृष्टता करते हैं, पहुंचे उनतक और "लेकिन" को अनुनय विनय से किनारे हट जाने के लिए मना ले.…

***

रोम यात्रा को आगे बढ़ाते हुए लिखना चाहते थे अभी, पर मन कहीं और की यात्रा पर निकल गया… और हम भी साथ उसके हो लिए!

***

Just saving a quote that I came across : : 

If the colour of life turns grey turn the palette the other way.


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