मेरी प्रार्थनाएं
छोटी होने लगी है,
मुझे डर है
मैं भूल न जाऊं
हाथ जोड़ना...
मेरा मन
उदास रहने लगा है,
भूल जाती हूँ
पढ़ते हुए
पसंदीदा पन्नों को मोड़ना...
जाने कैसे निभेगा
साँसों का आना जाना,
होता नहीं अब
हादसों के बाद
हौसलों को जोड़ना...
इंसान होने के
छिन्न भिन्न सभी प्रमाण,
टूटे हुए है सपने
टुटा हुआ है आशा का दीप
अब और कितना टूटना और तोड़ना...
बिन पहियों वाला
संवेदना का रथ हमारा,
निरुद्देश्य खड़ा है एक जगह पर
कब होगा हमारा इसकी ओर मुड़कर
इसे सही दिशा में मोड़ना...
कब होगा (?) सहज रूप से
साझे उद्देश्य की खातिर
हमारा जुड़ना और सबको एक सूत्र में जोड़ना…