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Channel: अनुशील
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यात्रा का हासिल!

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Rome - the city of visible history, where the past of a whole hemisphere seems moving in funeral procession with strange ancestral images and trophies gathered from afar.
-George Eliot 

सच, ऐसा ही तो है रोम! इस यात्रा को लिख जाने के ध्येय से शुरुआततो कर दी थी कोलोसियम के कुछ चित्रों से. अब आज आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं. वैसे भी इस यात्रा से लौटे वर्ष भर से ऊपर समय बीत चुका है, अब इसे और स्थगित नहीं होना चाहिए लिखे जाने से. 


हम वेनिससे चले रोम के लिये… जिसके विषय में नीरोने यूँ कहा है… Italy has changed. But Rome is Rome. जो अब भी पूर्ववत है, युगों की मार से अब भी सुरक्षित अपनी ऐतिहासिकता को बचाए हुए है. 

रात भर की ट्रेन यात्रा कर हम रोम पहुंचे. वहाँ पर सबसे पहले जिस बात ने ध्यान खींचा वह था छाता और छातों को बेचते हुए जाने पहचाने अपने से लोग… जिनमें से अधिकतर बांग्लादेशी थे. उन्हीं में से किसी से बंगला भाषा में वार्तालाप करते हुए सुशील जी ने होटल का रास्ता जानने का प्रयास किया… ठीक ठीक तो कुछ पता नहीं ही बता पाए वो लोग… फिर हम मैप के सहारे आगे बढ़ने लगे… झमझम बारिश हो रही थी. धीरे धीरे भटकते हुए पहुँच गए जगह पर. अब था सामने दो दिन और रोम का इतिहास. कितना देख पाते हैं, कितना जान पाते हैं ये सब हमारी घूमने की क्षमता पर ही निर्भर था, वेनिस पीछे छूटा नहीं था और रोम देखना अभी शुरू नहीं हुआ था… 


कोलोसियम के लिए टिकट लेने की मारामारी के विषय में बहुत सुन रखा था पर अपेक्षाकृत आसानी से कुछ आधे एक घंटे लाईन में लगने पर हमें टिकट मिल गया. अब हम रोमन साम्राज्य के सबसे विशाल एलिप्टिकल एंफ़ीथियेटर में खड़े थे! यह जान कर मन काँप जाता है कि इस स्टेडियम में योद्धाओं के बीच मात्र मनोरंजन के लिए खूनी लड़ाईयाँ हुआ करती थीं. 

हम हमेशा से ऐसे ही हैं क्या… इंसानियत से एक निश्चित दूरी बनाये हुए… प्रेम की अपनी मूल प्रकृति से दूर, मार काट लूट खसोट की परिपाटी को आगे बढ़ने वाले हारे हुए इंसान. ये तो बीते कल की बात थी, खंडहर पर्यटन स्थल बना खड़ा है लेकिन क्या आज भी नहीं जी रहे हैं हम ऐसा ही कुछ छोटे छोटे स्तरों पर… अपने मनोरंजन के लिए कितनी ज्यादतियां होती हैं आज भी, खून बहता है यूँ ही.…  सभ्यता की इतनी सीढ़ियाँ चढ़ लेने के बावजूद भी. खैर यह तो बहुत बड़ी विवेचना और बहस का विषय है, बस एक जिक्र के साथ सोचने को एक कड़ी छोड़ आगे बढ़ते हैं इतिहास के खंडहर की ओर. 

ध्यान रहे, एक युग आएगा जब यह वर्तमान युग खंडहर में परिवर्तित हो चुका होगा, तो कुछ दशकों की अपनी ज़िन्दगी को निजी स्वार्थों के दायरे में रहकर सवांरने का उपक्रम छोड़, क्या अच्छा नहीं होगा कि हम विस्तृत फलक पर कुछ ऐसा करें कि कल जब काल के गाल में समाया होगा अपना वजूद तो किसी खंडहर में प्रेमगीत बन कर गूंजे न कि विषाद गीत! 

यात्रा कुछ ऐसे विचार प्रवाह भी तरंगित कर जाती है भीतर और यही असल हासिल भी है. कभी लिखा था यात्रारत रहना ही चाहिए निरुद्देश्य ही सही… , यह रोम प्रसंग लिखते हुए ये बात भी याद हो आयी.
यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत के रूप में कोलोसियम चयनित है, यह आज भी शक्तिशाली रोमन साम्राज्य के वैभव का प्रतीक है, पर्यटकों का सबसे लोकप्रिय गंतव्य है और रोमन चर्च से निकट संबंध रखता है क्योंकि आज भी हर गुड फ्राइडे को पोप यहाँ से एक मशाल जलूस निकालते हैं. 

तसवीरें हैं, भव्यता की.… इतिहास की.… वैभव की और अनगिन यात्रियों की जिनमें से हम भी एक थे. जाने क्या देखने गए थे, जाने क्या पा कर लौटे थे!



यह है आर्क ऑफ़ कांस्टेंटायिन, कोलोसिम एवं पैलेटायिन हिलके बीच स्थित.  यह २८ अक्टुबर ३१२ को, मिल्वियन ब्रिज युद्ध में कांस्टेंटायिन प्रथम की जीत के उपलक्ष में, रोमन सीनेट द्वारा बनवाया गया था. 

अब कुछ तसवीरें और बातें रोमन फोरम की. "फोरम" लैटिन भाषा का शब्द है. व्यापार, न्यायालय, या राजनीतिक विचार संबंधी या विहार और भ्रमण के लिए बनाए हुए स्थान को फ़ोरम कहते हैं. रोम में ऐसी अनेक खुली जगहें थीं जो इस प्रकार के सार्वजनिक कार्य के लिए बनाई गई थीं. रोमन लोगों का विशेष ख्यातिप्राप्त फ़ोरम वैलटाईन तथा कैपिटोलाइन पहाड़ों के बीच की खुली जगह पर स्थित था. इसके इर्द गिर्द सुविख्यात शनिदेव का मंदिर, 184 ई.पू. का बना हुआ वैसिलिकापोर्सिया का प्राचीन न्यायालय तथा अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवन थे.


इतिहास की इन गलियों में घूमना जितना अभिभूत करने वाला अनुभव था उतना ही थका देने वाला भी. खंडहरों की ख़ामोशी, उनकी जर्जरता, उनके सन्नाटे भेदते हैं भीतर तक. वैभव का प्रतीक तो है, उस वैभव को महसूस भी कर रहे थे और पत्थरों के शहर में युगों पुरानी कोई कहानी को छू लेने की कोशिश भी…!
ये वहीँ मिला था रोमन फोरम में पत्थरों के बीच अपनी सम्पूर्ण कोमलता के साथ आश्वस्त करता हुआ कि बचा रहेगा पाषाण तो बची रहेंगी सांसें भी...! इससे मिलना, इसकी तस्वीर लेना हम आज भी अपनी यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हासिल मानते हैं!
यात्रा फिर आगे बढ़ेगी, अभी पत्थरों की गूँज ने पकड़ रखा है! 
अभी रोम में बहुत कुछ देखना बाकी है.…! 


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