एक पुराना टुकड़ा मिला, हृदय के बहुत करीब है यह… इसे यहाँ लिख कर रख लेना चाहिए. जाने फिर कलम यह लिख पाए या नहीं, जाने कविता फिर हमसे कभी यूँ कुछ कह पाए या नहीं…!
कविता ने जिस क्षण यह कहा था, उसे स्मरण करते हुए… उस पल को जीते हुए, सहेज लेते हैं यहाँ भी, वह क्षण और कविता का कथ्य, दोनों ही : :
एक और दिवस गुज़रा
और शाम हो गयी,
प्रार्थनारत भावनाएं
सहर्ष ही श्याम हो गयी!
अंतिम बेला में
खुल जाते हैं सारे फंदे,
पथरीली मन की राहें
वृन्दावन धाम हो गयी!
अब सोचता है चैतन्य हृदय
क्या, कब, कैसे घटित हुआ?
कि बीते दिनों, आस्था
बिकता हुआ सामान हो गयी!
सारे गम खुद ही क्यों जीयोगे
बांटने दो कुछ हमें भी,
आज तेरे प्रारब्ध की
कई अश्रूलड़ियाँ मेरे नाम हो गयी!
ये कैसी चमक है अद्भुत
हम तक आ रही है,
कुरूप हर सत्य विलुप्त
सकल छवियाँ अभिराम हो गयी!
अदृश्य धागे से जुड़ा है हर द्वीप का दर्द
जो एक का दुःख वही दूसरे की पीड़ा,
कुछ चुपचाप बैठ कर गुनें अब
बातें तो तमाम हो गयी!
एक और दिवस गुज़रा
और शाम हो गयी,
प्रार्थनारत भावनाएं
सहर्ष ही श्याम हो गयी!