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Channel: अनुशील
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जहां से शुरू किया था सफ़र...!

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पगडण्डी शीर्षक पर लिखते हुए कभी लिखा था इसे चिरंतनके लिए. आज यह कविता सामने आकर हमें पीछे की ओर ले जाने का हठ करने लगी. जहां से शुरू किया था वहीँ पर फिर से लौट जाने का कितनी बार मन होता है न, पर ऐसा संभव कहाँ? ज़िन्दगी तो आगे ही की ओर निकलती है, पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!


कई रास्तों से गुज़र लेने के बाद
फिर ढूंढ़े है मन
वही पगडंडियाँ
जहां से शुरू किया था सफ़र… 


वैसे तो लौट पाना होता नहीं कभी
पर लौटना अगर मुमकिन भी हो-
तो भी संभव नहीं कि
पगडंडियाँ मिल जाएँगी यथावत…


समय के साथ लुप्त होते अरण्य में
खो जाती है पगडण्डी भी
बिसर जाते हैं राही भी
विराम ले लेती है जीवन की कहानी भी… 


और खो चुके सुख दुखों की
जीतीं हैं स्मृतियों सभी
चमकता है रवि, खिलता है चाँद
झिलमिल करती हैं सितारों की रश्मियाँ भी…


दौड़ रही हैं राहें दूर तलक
ले जाएँ जहां तक बढ़ते जाओ ख़ुशी ख़ुशी
जिनपर चल रहे हैं आज,
उन पगडंडियों ने मुड़ने से पहले कहा अभी!


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