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कभी कभी भींगना भी चाहिए!

कहीं से शुरू होती है और बात कहीं तक पहुँचती है… जैसे जीवन यात्रा हर क्षण एक नया आश्चर्य है, वैसे ही यात्राएं भी अपने साथ हर क्षण आश्चर्यचकित कर देने का सामर्थ्य लिए चलती हैं. सबकुछ पूर्वनिर्धारित नहीं किया जा सकता, हर बात योजना के अनुरूप नहीं घटित होती यात्रा में. ठीक ऐसा ही तो है लेखन भी, जब जो चाहा कलम ने वो लिखा... उसे निर्देशित नहीं किया जा सकता… कम से कम मेरे साथ तो नहीं हो पाता!
रोम यात्रा किये साल भर से ज्यादा वक़्त निकल गया, लिखना चाहा था अपने लिए ही सब सहेज लेने के लिए, पर हो नहीं पाया लम्बे समय तक. अब इस अवकाश में प्रारंभ भी किया तो टलता ही जाता है, एक के बाद एक कड़ी लिख जाना संभव ही नहीं, मन है न… कब कौन सी यात्रा पर निकल जाए, कौन जाने!
कोलोसियम के कुछ चित्रों से शुरूकी थी यात्रा, फिररोमन फोरम का भव्य इतिहास खंडहरों में देखा और आगे मन में बसे कितने ही शहर दिखा गयी रोम यात्राके लेखन की प्रक्रिया. आज सोच रहे हैं स्मृतियों की मुस्कानों को पढ़कर आज रोम यात्रा का समापन कर ही दिया जाये… शुरुआत कर दी है, देखें कहाँ तक सफलता मिलती है…!
स्मृति के गलियारों में टहलते हुए अभी हम रोम की एक पगडण्डी पर चल रहे हैं, पगडण्डी हमें हमारे ठिकाने तक ले जा रही है. थोड़ी देर आराम कर के पुनः निकलना जो है.
दोपहर में हलकी बारिश की फुहारों का आनंद लेते हुए हम पूरा शहर बस से घूमे ही थे, अब हमें उपलब्ध समय के हिसाब से कुछ एक निश्चित स्पॉट्स पर उतरना था. बस तो अपना चक्कर पूरा करेगी ही अपने नियम के अनुरूप, उसका काम है.
यह है मोन्यूमेंट ऑफ़ विटोरियो इमानुएल २. यह एक स्मारक है जिसे आल्टर ऑफ़ फादरलैंड भी कहा जाता है, अर्थात जन्मभूमि की वेदी!
१८७० में रोम इटली के नए राज्य की राजधानी बन गया. इस समय के दौरान नियो क्लासिसिस्म (प्राचीन काल की वास्तुकला से प्रभावित एक इमारत शैली) का रोमन स्थापत्य कला में एक प्रमुख प्रभाव हो गया. इस अवधि के दौरान नियो क्लासिकल  शैली में कई महान महलों की  संरचना हुई मंत्रालयों, दूतावासों, और अन्य एजेंसियों की मेजबानी के लिए.
रोमन नियो क्लासिसिस्म के सबसे प्रसिद्ध प्रतीकों में से एक है. यह है जन्मभूमि की वेदी का स्मारक जो कि एक अज्ञात सैनिक की कब्र है. यह कब्र प्रथम विश्व युद्ध में हताहत हुए ६५०,००० इतालवियों का प्रतिनिधित्व करती है! जल रही ज्योत प्रचंड थी, स्मृतियों का अंश रहा होगा उनमें!
पहली तस्वीर में देखा जा सकता है, यहाँ काफी भीड़ थी और भीड़ को सीढ़ियों पर जमा होने व बैठने की मनाही थी. स्मारक की भव्यता के सामने बौना ही था कैमरे का सामर्थ्य फिर भी जो हो सका वह सहेजा हमने तस्वीरों में!
अब हम पुनः बस पर सवार हुए किसी अन्य स्थल तक पहुँचने के लिए. खुले में बस के उपरे तल्ले पर बैठना अच्छा लग रहा था. हर तरफ प्रतिमा ही प्रतिमा दिखती थी इमारतों पर, अब कितनी तसवीरें क्लिक हुई ऊपर बैठे हुए इसका कोई हिसाब नहीं फिर भी कितना कुछ छूट ही तो गया!
हम अब प्राचीन रोम के इस भव्य किले के समक्ष खड़े थे.  प्राचीन रोम के महत्वपूर्ण स्मारकों और स्थलों की सूची में यह ईमारत भी आती है, यह है "कैसल ऑफ़ संत' एंजेलो".
इटली की तीसरी सबसे बड़ी नदी तिबर पर स्थित हैं  कई प्रसिद्ध पुल. इन्हीं में से एक है यहपुल जो किले तक ले जाता है. पुल पार करते हुए पहले पार किये कई अन्य  पुलों के उपकार के समक्ष मन ही मन हम नत हुए.…
पुल पर बहुत सारी दुकाने थीं ज़मीन पर लगी हुई, चहल पहल का माहौल था, दो किनारों को जोड़ते हुए पुल की जीवंतता देखने व महसूस करने लायक थी. यहाँ काफी अच्छा समय बिताया हमने.
अब आगे बढ़ना था, पड़ाव से रिश्ता बस कुछ पल का ही होता है, राही के प्रारब्ध में रास्ते ही हैं बस. "बस" पर बैठो और बस चल पड़ो!
यहहै पिआज़ा डेल कैम्पिदौग्लियो, प्रस्तुत चित्र में केवल पलाज्जो सनाटोरियो दिख रहा है, यह रोम का सिटी हॉल है!
फ्लोरेंस के बाद रोम, नवजागरण काल का दूसरा मुख्य वैश्विक केंद्र था और रेनेसाँ से अत्यधिक प्रभावित भी हुआ था. रोम में नवजागरण वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियों में से एक है माइकलएंजेलोकी कृति  पियाज़ा डेल कैम्पिदौग्लियो.
अब चलते हैं पीपुल्स स्क्वायरकी ओर. इस स्क्वायर का लेआउट वास्तुकार ग्यूसेप वलादिएरद्वारा १८११ से १८२२ के बीच नियो क्लासिकल शैली में डिजाईन किया गया था.
यहाँ पर कई फाउंटेन व टावर्स थे पर सब की तसवीरें नहीं ले पाए क्यूंकि यहाँ उतरना ही नहीं हुआ, यह तस्वीर बस से ली गयी है. बारिश शुरू हो चुकी थी, इसलिए यहाँ उतरना स्थगित कर हम आगे बढ़ गए. अँधेरा हो रहा था और अब अगले दिन के लिए उर्जा बची रहे इसलिय विश्राम भी आवश्यक था तो हम इस स्क्वायर को अगले दिन के गंतव्य में डाल अपने ठिकाने की ओर बढ़ चले. बस के अंतिम स्टॉप पर उतर कर कुछ दूर के पैदल मार्च पर स्थित था हमारा होटल. भींगते हुए होटल पहुंचना भी अच्छा ही रहा… कभी कभी भींगना भी चाहिए!
लौटते हुए अन्धकार में ली गयी कुछ तसवीरें रात की जगमग कहानी सी है… हर झिलमिल रौशनी का अपना आकार है, अपनी गरिमा है!
तो इस तरह पहले दिन का समापन हो गया. अब एक दिन और था रोम भ्रमण के लिए, इसका विवरण अगली बार.
घूमते हुए तो थकान हुई ही थी, लिखते हुए भी मन खो जाता है और थक भी जाता है, चंचल जो है!
***
और अंत में, हर उस पुल के प्रति कृतज्ञता जिसे पार कर हम आगे निकल पाए हैं, हर उस मील के पत्थर के प्रति आदरभाव जिसने हमें रास्ते का पता दिया, हर उस गुरु के प्रति श्रद्धा जिसने उच्च उद्देश्यों का भान कराया.
हर मार्गदर्शक तारे के प्रति सम्मानभाव से नतमस्तक हम अभी अपने भारत की ओर देख रहे हैं- जहां चरणस्पर्श की परंपरा है, जहां गुरु ईश्वर से भी श्रेष्ठ होता है… जहां गुरुकृपा की छाँव में उच्च उदेश्यों के प्रति आस्था जगती है… सब शुभ ही शुभ होता है!
सीखने सीखाने की प्रक्रिया से जुड़ी हर इकाई को शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर नमन!


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