स्वप्न से स्मृति तकपर कृष्ण प्रेम और ललित प्रेम शीर्षक कविता पढ़ना ऐसा था जैसे अपने भीतर से ही बहुत कुछ ढूंढ़ निकालने की यात्रा पर चल देना...कृष्ण प्रेम था ललित बहुतपर ललित प्रेम है कृष्ण नहींकविता की इन पंक्तियों पर मन अटक कर रह जाता... और इस भिन्नता में अभिन्नता तलाशने में सकल भाव जुट जाते...! हृदय से खोजो तो क्या नहीं मिलता... अपने आप को निरुत्तर करने के लिए लिखी थी एक कविता... और बहुत ख़ुशी हुई थी लिख कर... आज पुनः पोस्ट कर रहे हैं रक्षा बंधन के शुभ अवसर पर…
इस कविता की प्रेरणा बनने के लिए स्वप्न से स्मृति तककी कविता और ललित भैया का आभार!
इस कविता की प्रेरणा बनने के लिए स्वप्न से स्मृति तककी कविता और ललित भैया का आभार!