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Channel: अनुशील
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शीर्षकहीन!

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होता क्या है कई बार, हमने जो कभी सोचा भी न हो, वैसा सुखद आश्चर्य बन प्रगट हो जाती है ज़िन्दगी, अनायास ही हंसने खिलखिलाने के बहाने दे जाती है और ऐसा हो तो आँखें नम हुए बिना भी नहीं रहतीं!
कल ये राखियाँ पोस्ट से आयीं, सुशील जी के लिए! इसे भेजा था मेरी बहन ने उनकी बहनों की ओर से! सिंदरी से मेरी ननदों द्वारा पोस्ट की गयी राखी पहुंची नहीं थी अबतक, और यह बात मेरी बहना को मालूम थी, रोज़ हमारे दो एक घंटे के वार्तालाप में सारी बातों का आदान प्रदान हो ही जाता है लगभग! तो कल मिली राखी हमें, चौंके हम, ये भारत का स्टैम्प तो नहीं है, अरे! ये राखी तो लन्दन से आई है.…! मेरी बहन अनामिका ने भेजा है इनके लिए मेरी दोनों ननदों की ओर से! मेरी ओर से राखी भी वही भेज रही है पांच वर्षों से! तो इस मामले में तो वह एक्सपर्ट है ही. स्टॉकहोम में या तो मैंने उस तरह खोजा नहीं, या फिर संभवतः राखी मिलती ही नहीं है यहाँ! 

अभी चार दिन पहले ही तो पता कन्फर्म कर रही थी हमसे, तो ये कितनी दूर की सोची उसने कि चलो सिंदरी से न पहुंचे समय पर, मगर लन्दन से पोस्ट होगी तो दूरी कम होने की वजह से राखी तक पहुँच तो जायेगा ही लिफ़ाफ़! पत्र और राखी पाकर हमें अचंभित तो होना ही था… आखिर सिंदरी की राखी, लन्दन से जो आई थी!
अनामिका को हम दोनों तो हृदय से धन्यवाद दे ही रहे हैं, मेरी ननदें भी उसे बहुत सारा थैंक यू कह रही हैं उनकी ओर से, उनके बिना आग्रह के, समय पर उनके भैया तक राखी पहुँचाने के लिए! 
और इन सबके बीच अभिभूत हैं हम! 

***

अब कुछ हमारी बातें! हम चारों की! साथ राखी का त्योहार तो बचपन बीतने के बाद मना ही नहीं कभी! २००१ से अबतक शायद ही हमने धागों का त्योहार सब साथ सेलिब्रेट किया हो! बनारस पढने गए तब से छोटे भाइयों को वही से राखी पोस्ट होती रही! और ये जिम्मेदारी भी हमेशा अनामिका ने ही उठाई, राखी सेलेक्ट करने का काम उसका होता था और साथ में संलग्न पत्र बस हम लिखते थे! कितनी दुकानें घूमती थी तब जाकर धागे लेती थी, सबसे अनूठे और सबसे प्यारे, उसके अनुसार! हम साथ रहे तब भी, अब साथ नहीं हैं तब भी.… ये समय से राखी पोस्ट करना वही करती आ रही है और पत्र हम लिखते आ रहे हैं! इस बार वो घर से दूर है, और हमसे करीब दूरी के अनुसार! स्टॉक होम व लन्दन आसपास ही तो हैं! भाई कहते हैं, कि वे स्वयं राखियाँ खरीद कर बाँध लेंगे, इतनी दूरी से भेजने पर मिले न मिले! पर इस बार भी अनामिका ने पूरा ख्याल रखा… समय रहते ही अपने राखी हंट का मिशन उसने लन्दन में भी पूरा कर लिया और भाइयों तक समय से राखी पहुँच गयी! पोस्ट करने से पहले उसने जल्दी से कोई मेसेज लिखने को कहा हमसे, कार्ड पर लिखना था! हमने मेल लिखा फिर उसे और यह संदेसा कार्ड पर अंकित हो सीधे भाइयों के दिलों तक पहुंचा----

Life may take us to different corners... 
Time may voice 
the expanse of miles between the corners...
But,
There will always be a sweet bird of love and concern 
that will softly keep on humming:
"We were together, we are together and we shall always be together!"

Happy Raksha Bandhan!

***

फोन पर सबसे बात हो गयी, सबने राखी बाँध ली हमें याद कर और यहाँ सुशील जी की कलाई भी सूनी न रही. राखी का पर्व यूँ डाक के सहारे और फोन के तार पर मना! और दूरी ने कोई खलल न डाली हमारे धागों के त्योहार पर! दूर हो कर भी न हम चारों भाई बहनों में कोई दूरी महसूस हुई, न ही सुशील जी और उनकी बहनों ने समय व सीमा को बीच में आने दिया! इस तरह हम दोनों की राखी अच्छी बीती परदेस में, जो हुआ सब प्रतीकात्मक ही हुआ पर कहीं से भी कम नहीं उन भोले दिनों से, भाव जो यथावत थे, हैं और रहेंगे!


***

अब हम यहाँ एक कविता सहेज लेते हैं, इसेराकेश भैया ने लिखा था हमारे लिए जब हमारा भाव रुपी धागा कुछ इस तरहउन तक पहुंचा था!  



बहना तूने जो धागा भेजा
वह अगणित भाव लपेटे है
रिश्तो की पतली डोर लगे
पर संबंधों का सार समेटे है. 


आँखों से अविरल निकल रही है
भावो की निर्मल गंगा
नयन हमारे अश्रुपूरित है
तू ठहरी देवी, दुर्गा, माँ अंबा.


जटाजूट भी हाथ पसारे
कह रहा इसे बहने दो
अक्षत रोली वन चन्दन है यह
पावन अमृत बहन अनुपमा का 


देने को तो बहुत कुछ है
पर सब कुछ तुच्छ तेरे आगे
मेरा सबकुछ तेरा है
भले पतले हो ये धागे


इन पतले स्नेह के धागे में
बंधन है जन्म-जन्मान्तर तक
आज कर्ण खड़ा है हाथ खोले
देने को कल्प मन्वंतर तक.

राकेश भैया द्वारा दिया यह अप्रतिम उपहार सदा हमें अभिभूत करता है!

***

भाई बहनों का यह प्यार बना रहे सदा, स्वार्थ व बाज़ार कभी न आये इस पावन रिश्ते के बीच, वो बचपन का भोलापन बना रहे, बहनें देती रहे दुआएं और भाइयों का हाथ सदा उनकी बहनों के सर पर रहे, ये पावन पर्व धागे की महिमा  को बारम्बार प्रतिपादित करता रहे, पहुँचते रहे ख़्वाब उनतक, खिलता रहे फूल उनके आँगन में और उन फूलों में मुस्कुराती रहे हम बहनों की याद! 
इससे ज्यादा और क्या कोई मांगे ज़िन्दगी से! 
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भावों का कोलाज़ है यह, क्या दे शीर्षक! इसे शीर्षक विहीन ही रहने देते हैं, सब अपने अपने भाव अपना अपना हिस्सा और अपनी अपनी दुआएं चुन लेना!


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