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Channel: अनुशील
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तब बरसेंगे मेघ!

भूल गए हैंबरसना मेघवैसे हीजैसे हमअन्याय का प्रतिकार करनाभूल गए हैंगरजना भी शायदभूल गया है आसमानवैसे हीजैसे हमसत्य के लिए आवाज़ उठानाभूल गए हैंबिजलियों ने भीकौंधना छोड़ दिया हैतब सेजब से हमने निबाहनी...

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एक मात्र कवच!

होता है ऐसा भी...जीवन के समानांतर चलता रहता है,कुछ मौत के जैसा भी-मन में घर कर जाती हैउदासीनता,उत्साह का इस कदर लोप हो चुका होता है...मानों वह कभी रहा ही न होअस्तित्व का अंश!जबकि सच्चाई यह होती...

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बचपन...!

चिरंतनपर 'बचपन' के ढ़ेर सारे अनूठे रंगों एवं अभिव्यक्तियों में शामिल मेरी एक कविता..., धन्यवाद चिरंतनइस प्यारे विषय पर अंक प्रस्तुत करने के लिए!वो खो गया हैदूर हो गया हैनन्हे नन्हेप्यारे प्यारेअँधेरी...

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इन्द्रधनुष के नाम...!

वेनिस और रोम घूमने गए हुए थे, बहुत अच्छी रही यात्रा... लेकिन इसके बारे में फिर कभी. अभी स्टॉकहोम की ही एक शाम सहेजते हैं यहाँ... इससे पहले कि इन्द्रधनुष की ही तरह स्मृति में भी वह छवि धुंधला जाए, उसे...

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बूंदों से बातें!

मुसलाधार बारिश हो, तो-बूंदें दिखाई नहीं देतीं,पर आद्र कर जाता हैबरसता पानी!मखमली घास परबिछ जातीं हैं स्नेहिल बूंदें,बन करकोई याद पुरानी!बूंदों में प्रतिविम्बित सतरंगी स्वप्न,हर एक क्षण एक नया जन्म,हर...

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एक अरसे बाद...!

बहुत दिनों बाद ये पन्ने पलटे... मौन को सुना... अपने साथ रही, घर लौटने की सी अनुभूति ने मन को शीतल किया...! यहीं टहलते हुए कितने ही दृश्य, भाव, बातें मूर्त होती रहीं और कविताओं से जुड़ा कितना कुछ याद आता...

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वेनिस: एक अलग सा अनुभव!

यही समय था पिछले वर्ष जब यह पोस्ट लिखी गयी थी वेनिस यात्रा के बाद... प्रकाशित करना रह गया था, ड्राफ्ट्स पढ़ते हुए इस पर रुके तो जैसे रुके ही रह गए... अपने ही लिखे शब्दों ने पुनः यात्रा करा दी ! अच्छा...

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उसका लिखा-लिखवाया...!

आँसुओं नेलिखा लिखवाया...क्या कहूँ?भींगते हुएमैंने क्या पाया...अपना ही मनफ़फ़क फ़फ़क करमुझसे मेरी हीपहचान करा रहा था,सुर तालकभी नहीं सीखे मैंनेपर मेरे भीतरकोई गा रहा था! गीतों में,बातों में, बूंदों...

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बहुत कुछ है...!

बहुत कुछ है जो गुज़र जाता है जाते हुए समय के साथ मगर बहुत कुछ ऐसा भी है जो सदा पूर्ववत ही रहता है सदियां बीत जाने के बाद भी जैसे कि...कभी घटित हुआ प्रेम, जैसे कि...किसी सच्चे हृदय की आवाज़,जैसे कि......

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नींद की गोद से!

नींद पर कुछ लिखना था चिरंतनके लिए, तब लिखा था यह. आज सहेज ले रहे हैं यहाँ भी…! जीवन का संगीत ढूंढना और मौत की कविता उकेरना चल रहा है सदियों से मनुष्य की चेतना के धरातल पर… उसी धरातल पर खड़े हो खींची...

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कविता के बारे में...!

पहले कभी का लिखा शब्दों का यह जोड़-तोड़ सहेज लिया जाए यहाँ…! ये कुछ नहीं… बस कविता का 'होना' और 'खोना'  अपनी जगह से खड़े हो देखती लेखनी के उद्गार :लिखने वालेजब कविता से बड़े हो जाने कादम भरते हैं,झूठे...

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बहुत दिन गुजार लिया यहाँ...!

स्वीडन आये चार वर्ष हो जायेंगे इस अगस्त में…! ये "कविता जैसा कुछ" यूँ ही कुछ सोचते हुए: जिससे भी मिलते थेकोई पूर्व परिचय नहीं होता था,जब आये थे सुदूर देश के इस शहर-हर मोड़ पर हवाओं का रुख अजनबियत के...

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उदास गए थे, खिल आये!

झिलमिल सागर से मिल आयेउदास गए थे, खिल आयेहम कभी जो भीड़ में गुम हो जाते हैंदेखता है मूक निस्पंद खोये हुएतो पास बुला लेता है,पढ़ कर मन की सारी बातेंकुछ एक बूंदों की छींटों सेकई दिनों से जागी आँखों...

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विस्तार पाता जाता है व्योम!

मैं सबसे ज्यादा खुश थी जबतब लिखी मैंने सबसे उदास कविता,जब था मन बैठा दुःख के तीरेतब खिंची कविता में मैंनेमुस्कान की लकीरें…  दशा अभिव्यक्त हुईया दशा का विलोम?ये कलम का अधिकारक्षेत्र है,विस्तृत उसका...

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ख़ुशी!

अनमने से निकले थे हम… जहां के लिए चले थे वहाँ नहीं जा पाए, बीच में ही एक स्थान पर बस से उतर गए… नोर्दिसका म्यूजियम के आसपास, वहीँ पास में एक झूंड देखा, पंछियों का, मानों उन्होंने पास बुला लिया हो हमें,...

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कार्ल लीनियस का शहर!

उप्साला... कार्ल लीनियसका शहर... इस महान जीव विज्ञानी की धरोहर को सहेजे हुए यह शहर विशिष्ट रूप से स्मृति में अंकित हो गया...! बहुत सुन्दर अनुभव रही उप्साला यात्रा, एक बार पुनः जाने की इच्छा लिए जब हम...

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रास्ता ही मंज़िल है!

रास्ता कहाँ ले  जाता है, इसका पता मंज़िल तक पहुँच कर ही मिलता है… इसलिए रास्तों का मज़ा लेते हुए चलना चाहिए, रास्ता अपने आप में ही एक मंज़िल होता है!  अनुभव  की सौगातें, संघर्ष के क्षण, अनिश्चितता का...

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अनजाने शहर में पीपल की छाँव!

फूल किसे नहीं पसंद... मुस्कराते रंग बिरंगे फूलों से ही तो दुनिया रंगीन है… जितनी भी रचना है ईश्वर की उसमें बेजुबान फूलों की बात ही निराली है… सौन्दर्य की परिभाषा लिखते हुए प्रभु ने पुष्प रच डाले होंगे...

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सेल्सिअस की कब्र से!

कल जो फूलों की सन्निधि एवं पीपल की छाँव के विषय में लिखा तो कुछ कुछ उनके निकट होने के भाव को जीया भी. आज सुबह जो आँखें खुलीं और हम अपनी खिड़की के पास बैठे तो कुछ ठंढक महसूस हुई. इस बार गर्मी का मौसम...

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मैं नहीं, लेकिन मुझमें है भगवान!

प्राचीन से नवीन की ओर हो... या नवीन से प्राचीन की ओर, यात्रा हमेशा सुखद होती है और सुखद होने का अर्थ आसान होने से बिलकुल नहीं है. हमारी यात्रा भी आसान नहीं थी, मन को समय लगता है मृत्यु की नीरवता से...

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