यही समय था पिछले वर्ष जब यह पोस्ट लिखी गयी थी वेनिस यात्रा के बाद... प्रकाशित करना रह गया था, ड्राफ्ट्स पढ़ते हुए इस पर रुके तो जैसे रुके ही रह गए... अपने ही लिखे शब्दों ने पुनः यात्रा करा दी ! अच्छा होता है सहेज लेना... घूमी हुई गलियों में फिर से घूमना....
पानी पर स्थित एक शहर... पुलों का शहर, करीब ४०० पुल जो जोड़ते हैं ११७ टापुओं को करीब १५० कनाल से होते हुए...! वेनिस को विलक्षण प्राकृतिक सौन्दर्य प्राप्त है, सबसे अलग सबसे जुदा है यहाँ का वातावरण... इस जहां का होकर भी जैसे इस दुनिया से परे कोई और ही दुनिया हो यह, सारे समीकरण बदले हुए, थल की जगह जल का आधिपत्य चहुँ ओर!
सड़कों की जगह सीढ़ियों वाले पुल बिछे हुए हैं; वाटर बोट, वाटर बस, वाटर टैक्सी एवं पारंपरिक गंडोला यातायात के साधन हैं. पानी ही पानी और किनारों पर स्थित सुन्दर इमारतों की नगरी, सबकुछ दृश्यमान मगर फिर भी ऐसा लग रहा था मानों कोई कल्पना ही हो. पुल पर खड़े हो कर चारों ओर जलसमूह को देखते हुए मन जाने कैसे बार बार बनारस के घाटों तक हो आ रहा था, किनारे पर लगे नाव का दृश्य मेरे लिए बनारस की याद मानों ताज़ा कर गया.
स्टॉकहोम से २ घंटे २० मिनट की हवाईयात्रा कर करीब १० बजे वेनिस पहुंचे हम. एअरपोर्ट से शहर तक बस से आये. बस स्पॉट से चलते हुए अनजान रास्तों पर बढ़ते हुए मैप के सहारे हम होटल तक आसानी से पहुँच गए. टहलते हुए फिर हम शहर घूमने निकले. पानी के किनारे पतली गलियों पर भव्य इमारतों एवं घरों के बगल से चलने का अनुभव अविस्मर्णीय रहा.
वाटर बस से पूरा शहर घूमना भी बहुत सुन्दर अनुभव रहा. ग्रांड कनाल के रास्ते से गुज़रते हुए हर एक पल, हर एक दृश्य को क्लिक कर लेने का प्रयास अब चेहरे पर मुस्कान ले आता है. हर एक पोर्ट पर वाटर बस रूकती थी, हमारी जहां इच्छा हुई उतर गए और फिर अगली वाटर बस पकड़ ली. यूँ बिना किसी विशेष ख़ाके का अनुसरण किये घूमने का अपना अलग ही अनुभव है, हर मोड़ पर कुछ न कुछ विशिष्ट जैसे हमारी राह तक रहा हो. एक अनजान शहर में जाने-अनजाने भटकने का मज़ा लेते हुए हम चलते रहे. पढ़ा हुआ शहर का इतिहास, कला और संस्कृति आँखों के आगे से गुज़रते जा रहे थे. पढ़ना और अनुभव करना दो अलग चीज़ें हैं, इसका आभास हो रहा था. आने से पहले पढ़ी गयी बातें अब अनुभूत हो कर पुनः पढ़े जाने पर एक नए अर्थ में निश्चित स्पष्ट होंगी. अब मेरे लिए वह केवल तथ्यों एवं आंकड़ों का पुलिंदा न होकर अनुभूत हवा होगी, बहता हुआ पानी होगा और जीया हुआ वातावरण होगा.
अब चलते है रियाल्टो ब्रिज की ओर. रियाल्टो ब्रिज, ग्रांड कनाल वेनिस के चार पुलों में से एक है. यह कनाल भर में सबसे पुराना पुल है जो कभी सैन मार्को और सैन पोलो के जिलों के लिए विभाजन रेखा थी. वर्तमान पत्थर का पुल १५९१ में बन कर पूरा हुआ और यह इससे पहले बने हुए लकड़ी के पुल जैसा ही है. यह पुल वेनिस के वास्तु का प्रतीक बन कर गर्व से खड़ा है. दो झुके हुए रैम्प एक केन्द्रीय पोर्टिको तक ले जाते हैं, पोर्टिको के दोनों ओर पंक्तिबद्ध दुकानें हैं. बहुत सुन्दर लगता है यह पुल, ग्रांड कनाल से आते जाते इसकी कई तसवीरें लीं.
अब हम बढ़े पियाजा सैन मार्को की ओर. अंग्रेजी में इसे सेंट मार्क स्क्वायर के रूप में जाना जाता है. वेनिस में आम तौर पर "पियाज़ा" के रूप में जाना जाने वाला यह स्थान प्रमुख सार्वजनिक स्क्वायर है. पियाज़ा के पूर्वी छोर पर सैंट मार्क चर्च है. वेनिस की सत्ता का प्रतीक स्थल डोजेज़ पैलेस यहीं स्थित है. गॉथिक वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है यह महल. पिअज़ेता दी सैन मार्को, पियाज़ा के आसपास का खुला स्थान है जो पियाज़ा के दक्षिण को लैगून के जलमार्ग से जोड़ता है. इस जगह बहुत सारे कबूतर थे और लोगों का हुजूम था कबूतरों को कुछ न कुछ खिलाता हुआ... कितने रंगरूप के नए नए लोगों को रोज़ देखते होंगे न ये कबूतर! चहल पहल से भरा यह स्थान, भीड़ का शोर और असीम उत्साह अपनी एक अमिट छाप छोड़ गए स्मृतिपटल पर.
शाम हो चुकी थी, वापस चले हमहोटल की ओर. थोड़ा विश्राम किया, पुनः रात्रि में पानी के इस शहर को देखने के लिए निकल पड़े हम. कुछ देर तक पैदल घूमे यहाँ वहाँ, गलियों में, दुकानों में और पुल पर से पानी में पड़ने वाली प्रतिछवियां निहारते रहे फिर निकल पड़े एक बार और हम पानी में ग्रांड कनाल की यात्रा पर. अँधेरे में अलग सा था अनुभव, कोलाहल और शांति के बीच की कोई आनंदमयी सी स्थिति... लगा था मानों हम अकेले होंगे भटकने वाले, पर रात में भी पूरी तरह मानों जगा हुआ था शहर... बस अँधेरे की वज़ह से सुबह वाली गति ने अल्पकालिक विराम ले लिया था पर घूमने वालों का उत्साह यथावत था... अपने अपने पोर्ट पर पंक्तिबद्ध विश्रामरत गंडोला बहुत सुन्दर लग रहे थे. अँधेरे में चमकने वाली रौशनी, पानी में प्रतिविम्बित छवियाँ और साथ साथ चलती ठंडी हवा, चेहरे पर पड़ते पानी के छींटें और लौट जाने की कोई जल्दी नहीं... ये ऐसा ही है मानों मुक्त हो गए हों कुछ समय के लिए जीवन के रूटीन से, आसपास की फ़िक्र और कल की चिंता से परे एक सुकून भरा शून्य जिसमें अपने आप से मिल पाने की प्रचुर संभावनाएं विद्यमान हों.
ग्रांड कनाल की यात्रा पर पुनः चलते हुए ऐसा लग रहा था मानों पहचानी राह पर अग्रसर हों हम जिसमें कुछ सपनीले एहसास जोड़ते चले जा रहा था रौशन अँधेरा. सेंट मार्क स्क्वायर पर उतर गए हम फिर. रात में सचमुच बहुत सुन्दर नज़ारा था. जगमगाता हुआ डोजेज़ पैलेस, रौशन सैंट मार्क बासिलिका अद्भुत लग रहे थे. चारों ओर चहल पहल थी. रात्रि की नीरवता का आभास शायद इस स्क्वायर ने कभी किया ही न हो. थोड़ी देर बैठे रहे वहाँ हम, हलकी बारिश होने लगी... कुछ एक बूंदें पड़ रहीं थीं... अच्छा लग रहा था, अब वापस लौटने को मुड़े हम. वाटर बस का इंतज़ार करते हुए कुछ और तसवीरें लीं फिर लौट आये रास्ते भर पानी का संगीत सुनते हुए. एक बज चुके थे, दिन भर की थकान थी पर मन ताजगी से परिपूर्ण था...!
अगले दिन मुरानो आइलैंड की यात्रा पर चले हम. यहाँ प्रसिद्ध ग्लास फैक्ट्री है. बेहद सुन्दर लैम्प्स का निर्माण होता है यहाँ, ग्लास से बने विभिन्न कलाकृतियों से सजी जगमग करती दुकानें ध्यान आकृष्ट करती हैं. कांच अपने जादू से सम्मोहित सा करता हुआ प्रतीत होता है.
ग्लासवर्क वेनिस के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न अंग है.
इसके उपरांत हम चले बुरानो आइलैंड की ओर. यह लेस के काम के लिए मशहूर है. यहाँ लेस की फक्ट्री है और लेस से बनी मनमोहक चीज़ें ध्यान आकृष्ट करती हैं. फोटो फ्रेम में लेस से बने आकार और चित्र बहुत सुन्दर थे. लेस से ही बने कपड़े और अन्य ढ़ेर सारी चीज़ें अनूठी थीं. बुरानो अपने रंग बिरंगे छोटे छोटे घरों के लिए भी प्रसिद्ध है. घरों के रंग एक विशिष्ट प्रणाली का पालन करते जो कि विकास के स्वर्णयुग से जन्म लेता हुआ एक प्रक्रिया को दर्शाता है. अगर किसी को अपना घर पेंट करना हो तो वह सरकार को अनुरोध भेजता है और सरकार नोटिस के माध्यम से उस जगह के अनुसार रंग के लिए अनुमति देती है! बुरानो भी पुल के माध्यम से ही जुड़ा हुआ है और यहाँ भी पुल से शहर का दृश्य बहुत सुन्दर लगता है. रंग बिरंगे घरों की कतारें बहुत सुन्दर लगीं, उनकी प्रतिछवि पानी में जैसे और खिल जाती थीं. पुल पर चलना, घरों और दुकानों के बगल से होते हुए पतले रास्ते पर निकलना और हर कोण से तसवीरें लेने का उत्साह... सब कुछ अद्वितीय!
अब हमारा अगला पड़ाव था लिदो दी वेनेज़िया. यह यहाँ का प्रसिद्ध बीच है. यहाँ पहुँचते हुए शाम के ६ बज चुके थे, कुछ आधे घंटे ही रह पाए हम इस विशाल समुद्री तट पर... लहरों में कुछ दूर तक गए, तट पर रजकणों के सान्निध्य का अनुभव किया और अथाह जलराशि के समक्ष अपनी लघुता महसूस की. बड़ी प्यारी जगह थी, तट पर सीपियाँ चुनते हुए ढ़ेर सारा वक़्त गुज़ारा जा सकता था वहाँ... लेकिन यात्रा में पड़ाव का साथ कुछ पल का ही होता है, कुछ पल ही मिलते हैं जी लेने को स्थान विशेष की गरिमा और भव्यता, फिर तो राह ही साथ होती है... फिर चाहे वो जल हो या थल!