बहुत दिनों बाद ये पन्ने पलटे... मौन को सुना... अपने साथ रही, घर लौटने की सी अनुभूति ने मन को शीतल किया...! यहीं टहलते हुए कितने ही दृश्य, भाव, बातें मूर्त होती रहीं और कविताओं से जुड़ा कितना कुछ याद आता रहा... सच! लौटना हमेशा सुखद होता है...
भूली बिसरी गलियों तक जाना
जैसे हो
एक अरसे बाद
कविताओं की ओर लौटना
और भर जाना विस्मय से!
क्यूंकि,
समझ रहे थे दूर हैं
पर नहीं थी कोई दूरी
पूरे होते रहे काम ज़रूरी
और इधर मौन बुनती रही कविता
व्यस्तताओं का शोर सुनती रही कविता
अब बोलेगी...
कुछ देर मुझे पास बिठाकर मेरी हो लेगी!