आँसुओं ने
लिखा लिखवाया...
क्या कहूँ?
भींगते हुए
मैंने क्या पाया...
अपना ही मन
फ़फ़क फ़फ़क कर
मुझसे मेरी ही
पहचान करा रहा था,
सुर ताल
कभी नहीं सीखे मैंने
पर मेरे भीतर
कोई गा रहा था!
गीतों में,बातों में, बूंदों में
है जीवन का अक्स समाया
वो कैसे जानेगा ये सब?
जो कभी
इस गली नहीं आया
एक एक लम्हा
आने से पहले ही
जैसे...
जा रहा था,
अनकहा सा
दर्द कोई...
भीतर ही भीतर
गा रहा था!
बस,
आँसुओं ने
लिखा लिखवाया...
क्या कहूँ?
भींगते हुए
मैंने क्या पाया...!