नींद पर कुछ लिखना था चिरंतनके लिए, तब लिखा था यह. आज सहेज ले रहे हैं यहाँ भी…!
जीवन का संगीत ढूंढना और मौत की कविता उकेरना चल रहा है सदियों से मनुष्य की चेतना के धरातल पर… उसी धरातल पर खड़े हो खींची गयी शब्दों की कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं:
एक दिन ज़िन्दगी अपना अन्तिम राग गाएगी! फिर, मीठी सी नींद आ जाएगी!
मौत भी तो नींद ही है... एक गहरी नींद- जिसके इस पार भी प्रकाश है जिसके उस पार भी प्रकाश है
जैसे एक रात की नींद देती है नया सवेरा, वैसे ही ज़िन्दगी जब नींद लेती है... तब होता है नया जन्म मिलता है नया बसेरा.
नींद के आँचल का ममत्व हर सुबह आँखों की ज्योति में बोलता है, जीवन और मौत के कितने ही रहस्य अनुभूति के धरातल पर खोलता है!
सब कुछ बिसरा कर नयी किरण के स्वागत में नींद की गोद से हम हर रोज़ जाग रहे हैं..., कितने ही नींद के पड़ाव पार कर एक जीवन से दूसरे की ओर मानों, हम अनंतकाल से भाग रहे हैं...!
यूँ ही यह क्रम चलता जाता है, जीवन और विराम का गहरा नाता है!