Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

कविता के बारे में...!

$
0
0

पहले कभी का लिखा शब्दों का यह जोड़-तोड़ सहेज लिया जाए यहाँ…! ये कुछ नहीं… बस कविता का 'होना' और 'खोना'  अपनी जगह से खड़े हो देखती लेखनी के उद्गार :


लिखने वाले
जब कविता से बड़े हो जाने का
दम भरते हैं,
झूठे दंभ औ' शान के अधीन हो…
तो इसी बीच कहीं
मर जाती है कविता!


बेवजह की बातों पर
ठन जाती हैं लड़ाईयां,
तर्क वितर्क से
बड़े होते जाते हैं मसले…
और इसी बीच कहीं
छूट जाती है कविता!


हाथों से छूटी जो भावों की प्याली 

छिन्न भिन्न हुए शब्द,
किसी ने सहेजा नहीं उन्हें
बस बढ़ी तो तमाशबीन भीड़…
ऐसे में वहां से बस क्षुब्ध हो
खिसक जाती है कविता!


लड़ते हुए देखा शब्दों को

अक्षर आपस में मुँह फुलाये बैठे थे…
यह अप्रत्याशित सा दृश्य देख
ठिठक जाती है कविता!


और कभी जो उसके साथ होते हैं 

तो हम ये जान लेते हैं-

लिखने वाला केवल माध्यम है…  

लिख जाने के बाद 

कवि से बहुत बड़ी हो जाती है कविता!


Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>