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Channel: अनुशील
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बहुत दिन गुजार लिया यहाँ...!

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स्वीडन आये चार वर्ष हो जायेंगे इस अगस्त में…! ये "कविता जैसा कुछ" यूँ ही कुछ सोचते हुए: 


जिससे भी मिलते थे
कोई पूर्व परिचय नहीं होता था,
जब आये थे सुदूर देश के इस शहर-
हर मोड़ पर हवाओं का रुख 

अजनबियत के बीज बोता था!


अब अक्सर ऐसा होता है

कोई पहचाना सा टकरा जाता है…
राह चलते या कभी 

बस में कभी ट्रेन में,
कुछ तसवीरें हू-बहू मिलती जुलती है 

पुराने वाले फ्रेम से… 


हाल चाल की 

कुछ बातें…
गुज़रे समय में क्या क्या बीता?

कुछ इन बातों की सौगातें… 


पहचान का अक्स 

कितनी ही शक्लों में 

अब हर मोड़ पर मिल जाता है...


कभी आता जाता था अचरज की तरह 

पर, मेरे लिए अब 

इस शहर में भी मौसम 

बस नियम के अनुरूप बदल जाता है! 



ऐसे तो 

वक़्त का पता नहीं चला, 

पर सोच रहे हैं अब तो लगता है-
बहुत दिन गुजार लिया यहाँ
जाने कितने ही कोणों से पहचान हो गयी है


ठीक वैसे ही 

जैसे कभी कभी लगता है-
बहुत समय हुआ दुनिया में आये
अब शाम हो गयी है!



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