होता है ऐसा भी...
जीवन के समानांतर चलता रहता है,
कुछ मौत के जैसा भी-
मन में घर कर जाती है
उदासीनता,
उत्साह का इस कदर लोप हो चुका होता है...
मानों वह कभी रहा ही न हो
अस्तित्व का अंश!
जबकि सच्चाई यह होती है-
उत्साह वैसे ही रहा होता है अपना
जैसे सम्बद्ध है साँसों से जीवन,
मुक्तहस्त लुटाई गयीं होती हैं खुशियाँ
फूलों से होता है भरा हुआ
खिला खिला उपवन!
फिर,
क्या अकारण ही छाती है निराशा?
चिंतित मन को क्या हो दिलासा?
इस मनःस्थिति से
कैसे हो मुक्ति?
शायद,
मन के भीतर ही है कहीं
छिपी हुई युक्ति!
वो
मिल जाए बस,
आत्मविश्वास ही हो सकता है
सभी व्याधियों के विरुद्ध-
एक मात्र कवच!
जीवन के समानांतर चलता रहता है,
कुछ मौत के जैसा भी-
मन में घर कर जाती है
उदासीनता,
उत्साह का इस कदर लोप हो चुका होता है...
मानों वह कभी रहा ही न हो
अस्तित्व का अंश!
जबकि सच्चाई यह होती है-
उत्साह वैसे ही रहा होता है अपना
जैसे सम्बद्ध है साँसों से जीवन,
मुक्तहस्त लुटाई गयीं होती हैं खुशियाँ
फूलों से होता है भरा हुआ
खिला खिला उपवन!
फिर,
क्या अकारण ही छाती है निराशा?
चिंतित मन को क्या हो दिलासा?
इस मनःस्थिति से
कैसे हो मुक्ति?
शायद,
मन के भीतर ही है कहीं
छिपी हुई युक्ति!
वो
मिल जाए बस,
आत्मविश्वास ही हो सकता है
सभी व्याधियों के विरुद्ध-
एक मात्र कवच!