Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

बचपन...!

$
0
0
चिरंतनपर 'बचपन' के ढ़ेर सारे अनूठे रंगों एवं अभिव्यक्तियों में शामिल मेरी एक कविता..., धन्यवाद चिरंतनइस प्यारे विषय पर अंक प्रस्तुत करने के लिए!

वो खो गया है
दूर हो गया है

नन्हे नन्हे
प्यारे प्यारे
अँधेरी काली रात में
जब टिमटिमाते हैं तारे

तो वहीँ कहीं
झलक अपनी दिखलाता है,
स्मृतियों के आकाश पर
धीरे से आता है!

कितने ही
खेल खिलौने याद दिलाने,
रूठे पलों को
फिर से मनाने!

वो था, तो सपने थे
वो था, तो सब अपने थे

एक मुस्कान ही
जग जीतने को पर्याप्त थी,
खुशियों की चाभी
जो प्राप्त थी!

सुन्दर मनोहर
भोला भाला था मन
फिर जाने कब?
विदा हो गया बचपन

अब तो बस
तारे टिमटिमाते रहते हैं
यदा-कदा
हम दोहराते रहते हैं-

उसकी महिमा उसका गान
काश! मिल जाए वो किसी शाम

फिर, पूछेंगे उससे
कि क्यूँ नहीं छोड़ गया?
कुछ मासूमियत के रंग...
मिल जाए,
तो सीख लें फिर उससे
जीवन का वो बेपरवाह ढ़ंग...

बोलो बचपन
मिलोगे न?
फिर से हृदय कुञ्ज में
खिलोगे न!

Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>