भूल गए हैं
बरसना मेघ
वैसे ही
जैसे हम
अन्याय का प्रतिकार करना
भूल गए हैं
गरजना भी शायद
भूल गया है आसमान
वैसे ही
जैसे हम
सत्य के लिए आवाज़ उठाना
भूल गए हैं
बिजलियों ने भी
कौंधना छोड़ दिया है
तब से
जब से हमने
निबाहनी शुरू कर दी है हर बात पर
समझौते की परिपाटी
आज हमारी गूंजती चीत्कारों तक
ले कर आई हैं सन्देश हवाएं-
सीधी अपनी रीढ़ करें हम
तब बरसेंगे मेघ!
अब हम बताएं...
कितना समय लेंगे दृढ़ होने में हम,
कब तक तरसेंगे मेघ!
बरसना मेघ
वैसे ही
जैसे हम
अन्याय का प्रतिकार करना
भूल गए हैं
गरजना भी शायद
भूल गया है आसमान
वैसे ही
जैसे हम
सत्य के लिए आवाज़ उठाना
भूल गए हैं
बिजलियों ने भी
कौंधना छोड़ दिया है
तब से
जब से हमने
निबाहनी शुरू कर दी है हर बात पर
समझौते की परिपाटी
आज हमारी गूंजती चीत्कारों तक
ले कर आई हैं सन्देश हवाएं-
सीधी अपनी रीढ़ करें हम
तब बरसेंगे मेघ!
अब हम बताएं...
कितना समय लेंगे दृढ़ होने में हम,
कब तक तरसेंगे मेघ!