Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

अनजाने शहर में पीपल की छाँव!

$
0
0

फूल किसे नहीं पसंद... मुस्कराते रंग बिरंगे फूलों से ही तो दुनिया रंगीन है… जितनी भी रचना है ईश्वर की उसमें बेजुबान फूलों की बात ही निराली है… सौन्दर्य की परिभाषा लिखते हुए प्रभु ने पुष्प रच डाले होंगे और बहुत खुश हुआ होगा तो उपवन की सृष्टि कर डाली होगी! संसार निराला है, विविध रंगों, विविध जातियों के फूल भी निराले हैं! सारी दुनिया के विशिष्ट रंगों को एक स्थान पर समेट लाया जाए तो कितनी अद्भुत और निराली बात होगी… ऐसा ही कुछ अनुभूत हुआ था जब हमने उप्साला की एकदिवसीय यात्रा में बोटानिकल गार्डन के ट्रॉपिकल ग्रीनहाउस में प्रवेश किया था!

उप्साला यूनिवर्सिटी का बोटानिकल उद्यान स्वीडन का सबसे पुराना बोटानिकल उद्यान है. ३५० सालों के लम्बे समय से यह उद्यान वनस्पति विज्ञान एवं बागवानी का संयुक्त सुन्दर एवं अनुदेशात्मक मिश्रण बन कर खड़ा है.

कुछ इतिहास की बात करें तो प्रथम बोटानिकल उद्यान १६५५ में अस्तित्व में आया जिसे आज लीनियस उद्यान के नाम से जाना जाता है. कार्ल लीनियस इस उद्यान के निर्देशकों में से एक थे. अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उद्यान को और क्षेत्र विस्तार की आवश्कता महसूस हुई और १७८७ में राजा गुस्ताफ तृतीयने उप्साला का शाही उद्यान यूनिवर्सिटी को प्रदान किया बोटानिकल गार्डन में तब्दील करने के लिये. इस तरह विस्तार मिला उद्यान को. १८०७ में लीनियस की जन्मशती के शुभावसर पर "लीनियेनम" उद्घाटन के लिए बन कर तैयार हुआ. यह ईमारत महान वैज्ञानिक लीनियस को श्रद्धांजलि स्वरुप अस्तित्व में आई थी.



बोटानिकल उद्यान को दो भागों में विभक्त देखा जा सकता है, नूतन एवं पुरातन उद्यान! नोरबीवैगेन नामक रास्ता उद्यान को दो भागों में विभक्त करता है. पुराने उद्यान में अधिकांशतः बरॉकशैली में महल के बगीचे हैं वास्तुकार कार्ल हर्लेमनकी १७४४ की योजना के अंतर्गत! सीधे पथ, सुगढ़ता से सजे फूल आगंतुकों का स्वागत करते हैं. पेड़ों एवं पौधों का विशाल संग्रह उद्यान के पुराने भाग की विशिष्टता है.


ऐसा लग रहा था मानों घंटों घूमने पर भी बहुत कुछ छूट जाएगा और ऐसा ही हुआ भी. उतने विशाल क्षेत्र को पैदल कुछ एक घंटों में घूम लेना तो असंभव था ही. हम ऐसा कोई अस्वाभाविक सा लक्ष्य ले कर चले भी नहीं थे सो जितना क़दमों ने साथ दिया उतना चले और शेष कभी और आने पर घूमने के लिए पीछे छोड़ आये.


नए उद्यान की ओर बढ़ते हैं अब. यहाँ उद्यान की मूल प्रकृति बिलकुल आधुनिक थी. प्रदर्शित मग्नोलिया बेहद सुन्दर थे, एक किचन गार्डन था, बारहमासी सीमाएं अपनी सुन्दरता में सबसे विशिष्ट थीं, वृक्षों का विशाल संग्रह तो था ही. इसी नए उद्यान के मध्य भाग में स्थित है ट्रॉपिकल ग्रीनहाउस.



कहते हैं कोई भी बोटानिकल उद्यान ट्रॉपिकल ग्रीनहाउस के बिना पूरा नहीं होता. १९३० में उप्साला को जब उसका अपना ग्रीनहाउस मिला तब वैसे पौधों को भी विकसित करने की सम्भावना बन गयी जो स्वीडिश जलवायु के प्रति सहिष्णु नहीं थे. अब करीब २००० प्रजातियाँ  इस  पांच कक्षों में विभाजित ग्रीनहाउस में विकसित हैं. हर कक्ष में उपयुक्त विशेष जलवायु का ध्यान रखा गया है, विभिन्न प्रजातियों की विशेष जरूरतों के आधार पर.


यही थी हमारी मुख्य मंजिल और यहीं सबसे ज्यादा वक़्त भी बिताया हमने: आश्चर्यचकित, अभिभूत एवं प्रसन्न! फूलों एवं पेड़ों के जंगल में कृत्रिम प्रकाश की प्रचुरता, चलने के लिए बनाये गए संकरे पथ, बूंदों की आवधिक बौछाड़… सब मिलकर ग्रीनहाउस को एक जगमग हरित आभूषण सा ही बना रहे थे.


कक्ष दर कक्ष की जो अब यात्रा है वह जैसे पूरे विश्व के हरित खजानों की यात्रा है… इतना कुछ है समेटने को, समझने को, स्मरण रखने को कि इंसान एक पल के लिए भ्रमित एवं हतोत्साहित ही हो जाये. वनस्पति विज्ञान की छात्रा रहे हैं, पर इतनी क्षमता नहीं कि सबों को उनके नाम से जान पायें, याद रख पायें…! 

खैर, फूल कहाँ शिकायत करने वाले हैं, उन्हें तो बस खिल कर स्वागत करना है आगंतुकों का और मिल जुल कर सम्पूर्ण विश्व के उद्यानों में खिलने वाले अपने कुटुम्बियों संग रहना है. कितना सुन्दर और सहज है व्यवस्था का यह रूप, सांस लेता जीवन, यूँ तो मूक मगर अपने हाव भाव से वाचाल पुष्प और अद्भुत वातावरण! 


सच, एक बार तो इस विवधता के आदर्श को मानव समाज में उसी सहिष्णुता के साथ प्रतिस्थापित देखने का प्रबल मन हो आया, और ऐसा लगा भी कि संभव भी है. आखिर विवेकशील हैं हम, यूँ विविध जंगली और जहरीले पौधों संग सुकोमल फूलों को संग्रहित किया जा सकता है, खिलाया जा सकता है, विकसित किया जा सकता है, तो संवेदनशील मानव समाज की रूपरेखा ऐसी क्यूँ नहीं हो सकती? शायद होती भी है, बस कुछ विसंगतियों ने घुसपैठ कर ली है जिन्हें हमें अपने शुभ संकल्प से जीतना है! इसी शुभ संकल्प के साथ चलिए फिलहाल भ्रमण करते हैं इस अद्भुत वन में.

पहले कक्ष का नाम है विंटर गार्डन. यहाँ मेडीटेरेनियन एवं सबट्रॉपिक्स के पौधे फलते फूलते हैं. प्राचीन पौधे जैसे कि नींबू (Citros limon) एवं बे लॉरेल (Laurus nobilis) पास पास उगते हैं अन्य विदेशी पौधों के साथ जैसे कि टमाटर (Solanum betaceum), सिकड और फ़र्न. यहाँ गंधद्रव्य के पेड़ों (Pimenta dioica) को पहचाना जा सकता है और साथ ही पेरू के मिर्च के पेड़ (Schinus molle) भी. गंधद्रव्य के पेड़ मिर्टल (हिना) फैमिली (Myrtaceae) से सम्बंधित हैं और मिर्च के पेड़ आम की फैमिली (Anacardiaceae) से. 

प्रचलित धारणा के विपरीत दोनों में से कोई भी मिर्च की फैमिली (Piperaceae) से सम्बद्ध नहीं है!


दूसरे कक्ष का नाम है विक्टोरिया हॉल. यहाँ एमेज़ोनस की विशाल वाटर लिली विक्टोरिया (Victoria cruziana) का बोलबाला है! विक्टोरिया के फूल केवल रात को खुलते हैं. विक्टोरिया के विशाल फूलों के ठीक विपरीत हैं वाटर मील (Wolffia arrhiza) के फूल. वे सबसे छोटे होते हैं, अनुमान लगाया जा सकता है इस बात से कि पूरा पेड़ ही लगभग एक मिलीमीटर का होता है. यहाँ ट्रॉपिकल पेड़ों को उनकी वृहदता और विशालता में देखा जा सकता है. ताल के चारों ओर हैं पेड़, घेर कर मानों सब विक्टोरिया के संरक्षण हेतु खड़े हों! केले (Musa paradisiaca), कोको (Theobroma cacoa), दालचीनी (Cinnamomum verum), वैनिला (Vanilla planifolia), गन्ने (Saccharum officinale), काली मिर्च (Piper nigrum) और धान (Oryza sativa) से लहलहाता हुआ है हॉल.



तीसरे कक्ष को रेन फोरेस्ट के नाम से जाना जाता है. यहाँ स्थान, पोषण एवं प्रकाश के लिए सर्वाधिक स्पर्धा है! कितने ही पौधे पेड़ों पर जीवन प्राप्त करने के लिए अनुकूलित हैं. ऐसे पौधों को एपिफायिट्स कहते हैं. बहुत सारे ऑर्किड और अनानास परिवार के सम्बन्धी एपिफायिट्स की श्रेणी में आते हैं. ऑर्किड की जडें हवा में झूलती हुईं होती हैं और वही से नमी सोख कर अपनी पत्तियों या तनों में संग्रहित करती हैं वहीँ ब्रोमेलियाड वर्षा के पानी को अपनी पत्तियों द्वारा गठित रोसेट में संग्रहित करते हैं. दो भिन्न अजीर के पेड़ यहाँ विद्यमान हैं, जिन्हें अलग से चिन्हित किया जा सकता है: वीपिंग फिग (Ficus benjamina) को उसके आकार की वजह से एवं पवित्र पीपल वृक्ष (Ficus religiosa) को उसकी ऐतिहासिक महत्ता के कारण.

पवित्र पीपल वृक्ष आनुवंशिक रूप से वही वृक्ष है जिसके नीचे सिद्धार्थ गौतम ने ढाई सदी पूर्व बुद्धत्व प्राप्त किया था. यह बात बाकायदा लिखी हुई थी वहाँ मानों बुद्ध स्थल सी कोई महिमा को अवतार लेने का सदाग्रह किया जा रहा हो. उस पेड़ की छाँव में सचमुच दिव्यता थी, अब उसी परिवार का ही तो वृक्ष है न वह भी, तो अनुवांशिकी के साथ कुछ दिव्य गुण और संस्कार भी होंगे ही साझे!



अब बढ़ते हैं चौथे कक्ष की ओर. इसे ऑर्किड रूम के नाम से जाना जाता है. पूरे वर्ष यहाँ पुष्प के खिलने का सिलसिला चलता है. परागण हेतु जिम्मेदार कीड़ों के लिए ऑर्किड का अद्भुत अनुकूलन एवं रूपांतरण देखने लायक है. बहुत सारे बॉटनी लेसंस स्मरण हो आये! इस कमरे का नाम ऑर्किड रूम भले ही हो पर इस कमरे की पहचान है फिलिपींस के Medinilla magnificaके वृहद् गुलाबी पुष्पस्तवक और अफ्रीकन वायलेट, Saintpaulia, की जंगली प्रजातियाँ.


पांचवा और अंतिम कक्ष सकलेंट रूम के नाम से जाना जाता है. शुष्क वातावरण में फलने फूलने वाले पौधों का घर है यह कक्ष. अमरिका की कैक्टस प्रजाति (Cactaceae), अफ्रीका की स्पर्ज फैमिली (Euphorbeaceae), और मडागास्कर के पौधों की मिलती जुलती जीवन शैली है भले ही वे आपस में बहुत सम्बद्ध नहीं हैं! जीते जागते पत्थर अर्थात लिथोप्स (Lithops) में जब फूल नहीं खिलते तो वह बिलकुल उन्ही पत्थरों एवं कंकडों सा लगता है जिनमें वह खिलता है. मूलतः दक्षिणी अफ्रीका में पाए जाने वाले इस अनूठे व्यवहार वाले पौधे ने तो चमत्कृत ही कर दिया, अपनी पहचान खो कर अपने परिवेश का इतना अपना हो जाना कि विभाज्यता की सकल संभावनाएं ही लुप्त, वाह!


इस कक्ष की सुन्दरता कुछ अलग ही थी, भांति भांति के कैक्टस अपने नुकीले काँटों का मानों गर्व से प्रदर्शन कर रहे थे! बहुत सारे रंग बिरंगे फूल भी थे. कैक्टस भी पुष्पित हो रहा था और फिर तो उसकी सुषमा देखने योग्य थी. हरे फूलों का आकार आकर्षण का केंद्र रहा हमारे लिए, आकार फूल का और आभास पत्तियों सा! कैक्टस के वन में खिले हुए मुस्कराते फूल विपरीत परिस्थितियों से जूझने का अनुपम उदाहरण बन कर खड़े थे…!
बचपन में कहीं पढ़ी पंक्तियाँ स्मृति के दरवाज़े से झाँकने लगीं: 
"वन की सूखी डाली पर सीखा कली ने मुस्काना 
मैं सीख न पाया अबतक सुख से दुख को अपनाना" 
यही गुनगुनाते हुए वापस मुड़े और पाँचों कक्षों से होते हुए प्रवेश द्वार तक निकल आये!


तो ये पूरी हुई यात्रा विश्व के हरित समुदायों के वृहद् संकलन की.  यह उद्यान सफलतापूर्वक पौधों की प्रजातियों के संरक्षण और जैव विविधता के लिए एक समझ विकसित करने के उद्देश्यों को पूरा कर रहा है.

यह भ्रमण तथ्यों के सन्दर्भ में जितना ज्ञानवर्धक था उतना ही समृद्ध एवं प्रफुल्लित मन भी हुआ नयनाभिराम छवियों को स्वयं में बसाकर!

पीपल की छाँव को आत्मा की गहराइयों में कहीं बसाकर जो हम अलविदा कह रहे थे इस मंज़र को, तो आँखें चमक भी रहीं थीं और कुछ नम भी थीं... आखिर, इस अनजान देश में पीपल और बरगद की छाँव ढूंढते मन ने उप्साला के इस पड़ाव पर कुछ अपना सा पा जो लिया था!


Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>