धूप की प्रतीक्षा है... !!
आसमान बादलों से ढंका हुआ है... पंछी उड़ते हुए झुण्ड में... कह रहे हों जैसे-- हो सके तो यूँ उन्मुक्त हो कर देखो... भौतिक रूप से तो नहीं संभव तो कम से कम आत्मिक रूप से ही उड़ने का फैसला तो करो... भाव भाषा...
View Articleसूर्योदय कभी नहीं टलता... !!
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी !दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते!!जयंती से ढंका कलश आज अपनी जगह से हट जाता था माँ की विदाई पर और जयंती आशीर्वाद स्वरुप रह जाती थी... याद आता है,...
View Articleमुट्ठी भर धरती और ज़रा सा आकाश... !!
डे लाइट सेविंग टाइम ने घड़ी को एक घंटे पीछे कर दिया... अब यहाँ और भारत के समय में साढ़े चार घंटे का अंतर हो गया... और ऐसा ही रहना है मार्च तक... जब फिर घड़ी की सूईयाँ एक घंटे आगे हो जायेंगी और अंतर घट कर...
View Articleएक मौसम ये भी... !!
एक मौसम ये भी...पत्ते,गिरते हुए,हो गए फूलों से... सहर्ष स्वीकारा मुरझाना,फूलों ने भी... !!भलेकितनी ही हों मुश्किलों,आस गीत न गा सके...जीवनइतना बेबस नहीं कभी... !!उदासी में भी,उजास है,विदाई नहीं मात्र...
View Articleइस सागर के पार... !!
रास्ता, रहस्य, नीला विस्तार...एक सागर और लहराता है इस सागर के पार...उस सागर में लहर उठती हैसवेरा होता है...खिल आती है लालीतब जब अँधेरा सघन घनेरा होता है...इस सागर से उस सागर तकअपने आप में स्वयं सागर...
View Articleतुम उन्हें शब्द देना... !!
हमआकाश धरा कीअनगिन छवियाँ सहेजेंगे...ईश्वर!तुम उन्हेंस्पंदित शब्द देना...वो कोनालुप्त हैजो संबल हुआ करता था...उचित यहीखुद हीवो कोना हो लेना...हमेंहँसना हैकविता में...भला हैकविता में हीरो लेना...वो...
View Articleउसकी उपस्थिति ही दिशा का संज्ञान है... !!
एक खिड़की हो...वहां से झांकतासमूचा आकाश हो...उस पारपूरी दुनिया होऔरइस दुनिया में हों हमउस दुनिया सेजुड़े हुए...आकाश की ओर दृष्टि कियेज़मीं की ओर मुड़े हुए... !!चाहे वो कमरा होया हो मन का वितान...और कुछ हो...
View Articleदिया और बाती के अंक में... !!
ये कुछ समय पुरानी तस्वीर है किसी सुबह की... सुबह की भागम भाग में नज़र पड़ी होगी... क्लिक कर लिया होगा इस क्षण को... फिर वो क्षण भी खो गया और तस्वीर भी विस्मृत हो गयी... ! विस्मृति की धूल जाने कैसे आज...
View Articleपतझड़ साक्षी है, फूलों के मौसम लौट आयेंगे... !!
तुम देखना एक समतल भूमि होगीकहीं दूर अवश्य...उबड़-खाबड़ राहों से गुज़र करहम जिस तक पहुंचेंगे... !कहीं होगाएक बित्ता आसमान...जो तुम्हारी मेरी छत परआधा-आधा होगा...हमने बांटे होंगे तब तकअनगिन खुशियाँ और...
View Articleमत दुखी हो रे मन, यही संसार है... !!
विचित्र है दुनिया...कितनी ही विडम्बनाएं करतीं हैं आघात...यहाँ सहजता कोसहजता से नहीं लिया जाता है...स्वार्थ, झूठ और पतन की परंपरा ऐसी आम हैकि सच्चाई इस दौर में ख़बर है...कोई किसी की खोई वस्तु उस तक...
View Articleआत्मसंवाद... ?!!
सही गलतअच्छा बुरासत्य असत्यउचित अनुचितये निर्णय ही दुष्कर है...और शायद ऐसा कोई तर्क-वितर्क...ऐसा कोई निर्णयअनिवार्य भी नहीं...कि संयत मन हो...उसके दिशानिर्देश पर चलने का उपक्रम हो...तो राहें खुल जाती...
View Articleमन के किसी कोने में... !!
गहन थीउदासी...मन केकिसी कोने में...वही कोनाजो दिए हुए था समूचा संबलजीवन कोजीवन होने में...दीप जलातेपर आंधियाँ बहुत थींबुझ ही जाता नफिर और उदास कर देती ये रीत खोने की...सो आँखों में आस लिएअँधेरे को...
View Articleअंततोगत्वा सब माटी है... !!
आना हैआकर फिरचल देने की परिपाटी है...माटी का दियामाटी के इंसानअंततोगत्वा सब माटी है...कहते हैं, चलते रहने सेगंतव्य तक की दूरीकम हो जाती है...अंतिम बेला दिवस कीअवसान समीप हैखुद से दूरियां भी कहाँ गयीं...
View Articleबहते जाना है... !!
धाराओं का खेल था...दो किनारों का क्षितिज पर मेल था...जीवन चलता ही रहा...सूरज नित निकलता नित ढलता ही रहा...कि जलते जाना है बाती को...नदिया को बहते जाना है...पड़ाव होंगे राह में...पर वो भी ठहर जाने के...
View Articleये फ़लक भी मन जैसा है... !!
ये फ़लक भीमन जैसा है...कितने रंग बदलता है...एक पल उजासतो ठीक अगले क्षण कोहरा फिर, ये गति कितनी ही बार दिन में,लेती है खुद को दोहरा ठहरता नहीं कुछ :न लालिमा...न ही कोहरा...डोरसमय के हाथों है...हम तो...
View Articleअब रंग श्वेत है... !!
आस की जलती लौ...और आंसुओं के सहारे...कितने मोड़ यूँ ही कर लिए गए पार...हर बारअदृश्य शक्तियों द्वाराथाम ली गयी पतवार... !हर बार लिखते हुए आंसू...नम हुई जब नोक कलम की...तो उस नमी से भीरंगों की ही सम्भावना...
View Articleहम सुनते रहे, गुनते रहे... !!
खिल आते हो...नेह बढ़ाते हो...फिर सब वीरान कर चले जाते हो...कहो कैसा ये व्यवहार... ?फूल बोल उठे :यही जगत आधार !बहती हो...जाने क्या कहती हो...लौ को कितनी बार बुझाती हो...कहो ये तुम्हारे कैसे सरोकार......
View Articleअपने गंतव्य तक पहुंचने को आतुर चिट्ठियां... !!
पतझड़ भीअपनी सुषमा में...वसंत सा प्रचुर...उड़ते हुए सूखे पत्ते...जैसे चिट्ठियां हों...अपने गंतव्य तक पहुंचने को आतुर...रंग बिरंगे स्वरुप में...संजोये हुए कितने ही सन्देश...आकंठ समोये कहे-अनकहे कितने ही...
View Articleकि गला था रुंधा हुआ... !!
कहते कहते रुक गए...कि गला था रुंधा हुआ...कौन सा दर्द ये...आज यूँ ज़िन्दा हुआ...चोटें लगती हैं अक्सर...तो घाव भी भर जाते हैं...जो खो गए इस मौसम में...वो फूल यादों में मुस्कुराते हैं...आँखों में झिलमिल...
View Articleउस नीले एकांत में... !!
कभी तुम देखना समंदर...समंदर देखती हुईतुम्हारी आँखों की छविहम उकेरेंगे...लहरों का आना-जाना थाहतीतुम्हारी नज़रों की नमीलिखेंगे...एकटक तकते हुए उस छोर का आसमानतुम हो जाओगे उस नीले रंग में लीन...वह आसमानी...
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