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Channel: अनुशील
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वो चल रही थी... वो चलती रही... !!

वो चल रही थीअपनी धुरी पर...वो चलती रही... युगों युगों से है जल रही हमें शीतलता देने कोवो ख़ुशी ख़ुशी जलती रही... उसका संतुलनउसकी गतिउसका धैर्य ये चूक न जायेंइसलिए ज़रूरी है हम थोड़ा झुक जायें है यही जीवन...

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पल थे चार... !!

चार पल थे...उनमें ही जीना था...हम वो नहीं रहे जो कल थे...कटु अनुभवों की घुट्टी को ज़रूरी जो पीना था...अनुभूतियाँमन के धरातल परकुछ बीज नए बोतीं हैं...ज़िन्दगीहर क्षण बदल रही हैबिखर रही है, संवर रही...

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कोहरे में गुम होती आकृतियों में... !!

कई बारसमझ नहीं आता...क्या सही हैक्या गलत... कई बारवस्तुस्थिति यूँ हो जाती है जैसे...आगे की राह परकभी न हटने वाली धुंध जमी हो...कई बार यूँ भी हुआ हैकि कोहरा भयंकर होता हुआलील गया है समूचा विश्वास...कई...

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बारिश, फिर आना... !!

बूंदों की छम छमएक छतरी और एक हमजीवन की सरगमधरा पर बूंदों का आगमनजीने के लिए ज़रूरी हैं कुछ भरमहर सुख दुःख में होती रहे आँखें नमबस हरदम ये बात रहे...बारिश हो न हो... छतरी हो न हो...जीवन रहते... जीवन का...

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सागर किनारे... !!

बहता पानी...अपने साथ सारे दोष दंश बहा ले जाता है...जब उमड़ घुमड़ रहीं होंमन के प्राचीरों में दुविधाएं...लहरों का आना जाना उद्वेलित कर रहा होघेरे हुए हो अनेकानेक बाधाएं...तो किसी ताल तलैया नदी पोखर या...

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जाने कितने ठौर... !!

ठोकरइतना नहीं खलती गर दर्द न रह जाता...घावों के निशान न रह जाते...शायदये रास्ते के ठोकरज़रूरी हैं...कि चलने का सलीकाचलते-चलते ही तो आता है... लड़खड़ाते हुएआगे बढ़ने में...दर्दधीरे-धीरेबिसर जाता है......

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धमनियों में रक्त की तरह... !!

धमनियों मेंरक्त की तरह...तुम प्रवाहित हो मुझमेंचलायमान वक़्त की तरह...तुम्हारे सान्निध्य मेंजब भी होती हूँहोती हूँ आद्यान्तभक्त की तरह...दर्द मेंदवा होती होजब कराहती हूँ मैंअशक्त की तरह...कविते! कभी...

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...तो पा जाते "विवेक" !!

इस छोटी सी धरा कीबड़ी से बड़ी समस्याहल हो जाती...काश, जो सुसुप्त विचारों मेंचिरप्रतीक्षितहलचल हो पाती...विचार हीपरिणत होते हैंकर्म में...नीयत परिलक्षित होती हैबातों केमर्म में...दिल से लिखीदिल की...

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स्याही से स्वर तक... !!

स्याही से स्वर तक...मौन से असर तक...बिखरी हैंसंभावनाएं...धरती की गोद सेबादलों के घर तक...प्रेरणाकिसी एक पल की...ढ़ल जाती है कविता मेंसहर तक...रौशनी की आस मेंकई बार जागती हैंनिर्निमेष आँखें...रात्रि के...

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एक बार फिर... !!

एक बार फिर चमक उठीरौनक खो चुकी थी,जो मोती...कैसे कैसे चमत्कारों कीप्रत्यक्ष-द्रष्टा,जीवन जैसे अखंड एक ज्योति...मत बैठ जाना हार करकि वो सहज बिछौना है उसका,पीड़ा आत्मा की सेज़ पर है सोती...सुख-दुःख की...

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सफ़र पर... !!

बहुत सारी बेचैनियों को समेट करगठरी बाँधजब हम चलते हैं सफ़र पर...तो ये अतिरिक्त भारहमें पहले ही थका देता है...सफ़र की थकानहृदय के बोझये जीवन के उतार चढ़ाव मेंसाथ लेकर नहीं चले जा सकते... !कहीं राह में एक...

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हो एक ऐसा मन का कोना... !!

एक क्षितिज सीकोई परिकल्पना है... मन के अनछुए कोने परइन्द्रधनुषी कोई अल्पना है...ये कल्पनायें...ये अल्पनायें...मृतप्राय से जीवन मेंसंजीवनी सीउपस्थित हैं... सपने देखने की ललक जो जीवित हैतो तमाम उथल पुथल...

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एक छोटी सी चिड़िया थी... !!

एकछोटी सी चिड़िया थीदूर जाती हुई और छोटी हुई जाती थीइतनी छोटी कि फिरविलीन हो गयी आकाश के विस्तार मेंजैसे हो ही नहीं वो संसार में... !सुख होया हो दुःखउस छोटी सी चिड़ियाँ सा ही तो हैपास होता है तो अपनी...

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टूटे स्वार्थ की कारा... !!

चाँद सूरज नहीं थेतो जगमग था एक तारा...हे उषा! तुम्हारे आँचल में हो जड़ित सदा उजियारा... !! आसमान के अंक मेंहै जो भी अद्भुत न्यारा...वो हर शय बड़ी उदारता सेहै नभ ने धरा पर वारा... !!हो पर्वतों का तेज़...

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क्या होगा तब... ?

एक फूल के मुरझाने सेन ही वीरान होता है गमलान ही हम उदास होते हैं...ये एक सहज प्रक्रिया जो है... ! मगरक्या होगा... ?गर असमय  ही फूलों संगपूरा गमला  मुरझा जाए तो...लूट गयी खुशबूफिर लौट न पाए तो...बीच से...

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बात बस जरा सी... !!

कोहरा, कुंहासा, उदासीबात बस जरा सी... !!मन के मौसम सीदूर छाई घटा भी रुआंसी... !! कैसा सुखद विरोधाभास है-इन्द्रधनुषी आभा उसकीबस नाम से वो उदासी... !!कोहरे के पीछे से एक किरण झाँकेगीबदल जायेगा परिदृश्य...

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चुटकी भर रौशनी ने... !!

हो दीप...या हो टिमटिमाता सितारा...उपस्थित वहीँ हैं है जहाँ अँधियारा... !!विम्ब...प्रतिविम्ब...रूपक रौशनी के इनसे ही है उजियारा... !!टिमटिमाती नन्ही सी लौक्षीण से हौसले और विराट अन्धकार फिर भी जीवन कभी...

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एक टुकड़ा आसमान... !!

कह तो देंदोस्त! तुम्हारी बहुत याद आती है...लिख भेजें पत्रकितनी ही पुरानी विस्मृतियों की स्याही से...पर, कहो तो, गरतुम्हारे हिस्से की चरम व्यस्तता नेअनदेखा कर दिया इन्हें... और इन्होंनेइस बड़ी ही सामान्य...

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...सर्वं देवीमयं जगत् !!

माँ की सुन्दर प्रतिमा...करुणामयी आँखें...विराट स्वरुप... सप्तसती पाठ...पूजा अर्चना...आरती दीप धूप... जिस भक्ति भाव सेप्राणप्रतिष्ठा... उसी भाव से विसर्जन... आगमन और प्रस्थान की परंपरादिव्य अकाट्य...

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तो देर हो जाएगी... !!

तबजब धरतीकितने ही कुचक्रों में फंसीइंसानी फितरतों कोझेल रही है...कुवृत्तियां सहज मानवीय प्रकृति सेखेल रही है...दिशाहीन संवेदनाओं काकाफ़िलादूर निकल गया है...चट्टानों पर जमासदियों पुराना बर्फ़ भीपिघल गया...

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