$ 0 0 इस छोटी सी धरा कीबड़ी से बड़ी समस्याहल हो जाती...काश, जो सुसुप्त विचारों मेंचिरप्रतीक्षितहलचल हो पाती...विचार हीपरिणत होते हैंकर्म में...नीयत परिलक्षित होती हैबातों केमर्म में...दिल से लिखीदिल की लिखीदिमाग तक जो पहुँचती पाती...इस छोटी सी धरा कीबड़ी से बड़ी समस्याहल हो जाती... प्रश्न ढ़ल जातेउत्तर केवर्ण में...जीवन इतना बेबस नहीं होतारोज़ रोज़ केघटनाक्रम में...थोड़ा अपने भीतर हम जा पातेतो पा जाते "विवेक"जो है बिसरा दिया गया साथी...निश्चित ही फिर--इस छोटी सी धरा कीबड़ी से बड़ी समस्याहल हो जाती... ... !!सूरज की किरणों के साथ, ज़िन्दगी भी मुस्काती... !!!