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Channel: अनुशील
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वो चल रही थी... वो चलती रही... !!

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वो चल रही थी

अपनी धुरी पर...
वो चलती रही... 


युगों युगों से है जल रही 


हमें शीतलता देने को
वो ख़ुशी ख़ुशी जलती रही... 


उसका संतुलन
उसकी गति
उसका धैर्य 


ये चूक न जायें
इसलिए ज़रूरी है हम थोड़ा झुक जायें 


है यही जीवन की गति
हर क्षण लगी हुई है कोई न कोई क्षति 


सब सहती हुई धरा करती है प्रयाण
धरती माँ! तुम्हारे धैर्य को कोटि कोटि प्रणाम !!







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