$ 0 0 वो चल रही थीअपनी धुरी पर...वो चलती रही... युगों युगों से है जल रही हमें शीतलता देने कोवो ख़ुशी ख़ुशी जलती रही... उसका संतुलनउसकी गतिउसका धैर्य ये चूक न जायेंइसलिए ज़रूरी है हम थोड़ा झुक जायें है यही जीवन की गतिहर क्षण लगी हुई है कोई न कोई क्षति सब सहती हुई धरा करती है प्रयाणधरती माँ! तुम्हारे धैर्य को कोटि कोटि प्रणाम !!