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Channel: अनुशील
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टूटे स्वार्थ की कारा... !!

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चाँद सूरज नहीं थे
तो जगमग था एक तारा...
हे उषा! तुम्हारे आँचल में
हो जड़ित सदा उजियारा... !! 


आसमान के अंक में
है जो भी अद्भुत न्यारा...
वो हर शय बड़ी उदारता से
है नभ ने धरा पर वारा... !!


हो पर्वतों का तेज़ अचल
या हो कलकल बहती धारा...
जीवन का सन्देश लिए
सृजित प्राकृतिक हर नज़ारा... !!


सृजन और प्रलय की
महीन रेखा पर चलते जीवन की आस्था से
है हार रहा अँधियारा...
हर क्षण संघर्ष है दृश्यमान
संघर्षरत हर अणु सृष्टि का
अब तो टूटे स्वार्थ की कारा... !!








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