$ 0 0 बहता पानी...अपने साथ सारे दोष दंश बहा ले जाता है...जब उमड़ घुमड़ रहीं होंमन के प्राचीरों में दुविधाएं...लहरों का आना जाना उद्वेलित कर रहा होघेरे हुए हो अनेकानेक बाधाएं...तो किसी ताल तलैया नदी पोखर या सागर किनारेकुछ पल विश्राम करना चाहिए...समस्त विध्वंसक प्रवृतियों के बीचकुछ क्षण सृजन का अभिराम होना चाहिए...कैसे किरण जल पर नाचती हुईनीले विस्तार की कथा कहतीं है...कैसे तट से टकराते पानी के शोर मेंकतरा कतरा ज़िन्दगी की व्यथा बहती है...नित घटित हो रही संभावनाओं कासुकंठ गान होना चाहिए...समस्यायों के सागर मेंविसंगतियों की भीड़ मेंप्रश्नों के इस जंगल में... तुम सा समाधान होना चाहिए...कुछ क्षण सृजन का अभिराम होना चाहिए... !!