एक क्षितिज सी
कोई परिकल्पना है...
मन के अनछुए कोने पर
इन्द्रधनुषी कोई अल्पना है...
ये कल्पनायें...
ये अल्पनायें...
मृतप्राय से जीवन में
संजीवनी सी
उपस्थित हैं...
सपने देखने की ललक जो जीवित है
तो तमाम उथल पुथल के बावज़ूद
ज़िन्दगी व्यवस्थित है... !
बस छोटा सा सपना है-
कि सपने कभी उदासीन न हों
होने न होने की जद्दोजहद के बीच
कायम रहे क्षितिज का होना...
तमाम अँधेरे रौशन कर दे
हो एक ऐसा मन का कोना... !!